मैं और मेरे अह्सास

आज छलक रहीं हैं आंखे क़तरा-क़तरा समेट लो l
जाम पे जाम छलक रहा पीकर नशे में झूम लो ll

बहोत क्रम मिलते हैं एसे लम्हें जिंदगी में जीने के l
जी जान भरके आँचल में खुशियो को लपेट लो ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111824849

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