कभी तोड़ी न वो लय पहले से जिसे पहचानती रही |
इंसानो सी फितरत थोड़ी है जो ,पल पल बदलती रहे ,
पत्थर तो उनसे नेक ही है | उससे प्रेम न हो तो हो भला किससे ? जो , रूप रंग नश्वरता पर ठहरता नही | नही जानती अन्तर पत्थर और इन्सान में , बस इतना जानती हूँ कि पत्थर भी प्रेम मे साकार हो जाता है | निराकार से आकार हो जाता है | देखे तो कभी कोई करके प्रेम उम्र की लकीरे प्राण अपने बचाकर भागती हैं | मै बूँद भी न पाईं हूँ , न बूँद मे समाई हूँ मगर न जाने कौन जानता है| भीतर प्रेम मानता है | मै भी तो पत्थर ही हूँ जिसमें प्रेम नही , मगर प्रेम मे पत्थर ,पत्थर नही | पत्थर ने पत्थर उपजाये | पत्थर ने मानव है जाये | पत्थर ही भाव को उपजाये | पत्थर हर भाव मे बैठा है , पत्थर अ-भाव मे बैठा है | पत्थर ही निर्माण करे | सब मे ही यह भाव भरें | सब चलते है इस पत्थर से , जो है , अविचल ,अचल विराम धरे | पत्थर सा गुण कोई गढ़े नही , पत्थर को कोई पढ़े नही | पत्थर से प्रगटी पार्वती , पत्थर में मे बैंठे है शिवजी , पत्थर से पवित्र नही कुछ भी पत्थर मे विराजे पत्थर मे विराजे राधा संग प्यारे मोहन ,अनिमिष | पत्थर मे बैठी कल्याणी |
पत्थर ही पत्थर सृष्टि मे | .......

Hindi Poem by Ruchi Dixit : 111847955

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