फूलों की वादियां, पर्वतों की चोटियां,
बर्फ के फाहों बीच चीर की पत्तियां,
मनभावन दृश्यों में नाचती जवानियां,
मंद ठंडी हवाएं, सुकून देती झाड़ियां।
झील के झूलों में डगमगाती डेंगियां,
कुदरती नजारों को ओढ़े पहाड़ियां,
परिंदों के गुंजन संग झूमती डालियां,
स्वर्ग सी घाटी में इठलाती जोड़ियां।
घाटियों की ओट में हो रही सरगोशियां,
हर तरफ बिछी यहां कांटों की क्यारियां,
घेर लिए जल्लादों की क्रूरतम हथेलियां,
धर्म पूछ भेद गयी सनसनाती गोलियां ।
*मुक्तेश्वर की अभी अभी लिखी गयी कविता -01/05/2025 ,5.10 PM