चमके अंगारे, जले थे दिल,
बारूद में डूबी थी हर एक सिल।
शहीदों के घर ना थी रौशनी,
पर आंखों में अब नमी भी नहीं।
इरादा था, हर कतरा फौलाद,
माँ के सिंदूर का लिया प्रतिघात।
बिजली कड़ी, गूंजा गगन,
आई वायुसेना बनकर अगन।
मिसाइलें चलीं, सीना तना,
हर दुश्मन ने डर को पहचाना।
ना डर, ना झुकने की बात,
सिंदूर बना था जंग का ज़ज्बात।
जो छुपे थे अंधेरों में, चीखे उजालों में,
अब तिरंगा लहराया चालों में।
हर गोली में था इक प्रण लिखाया,
"अब खून का कर्ज खून से चुकाया!"