वैसे तो बहुत समझदार था "वो"
पर मुझे कभी समझा नहीं .!
कहता था_ तुम्हारी बातें बहुत अच्छी लगती है
पर_ मेरी ख़ामोशी कभी समझा नहीं .!
प्यार भी करता था बहुत ,
पर_ मेरे दर्द को समझा नहीं .!
चेहरे पर मुस्कान बहुत भाती थी उसे ,
पर_ मेरे आंसुओं को रोक न सका .!
कहता था_ मरने की बात मत करो ,
पर_ थोड़ा थोड़ा रोज मार रहा था "मुझे" ..!!
चाह कर भी नही, सम्भाल पाता,
कभी मुझको --कभी खुद को..!!!
- Soni shakya