“पसीने की खुशबू”
(मज़दूर दिवस पर)
ना मंच पर चढ़ते, ना तस्वीरें छपती,
ना इनके नाम पर कोई तालियाँ बजतीं।
फिर भी हर सुबह सबसे पहले जगते हैं,
और हर शाम थककर चुपचाप सो जाते हैं।
कभी दीवारों की ईंट बनते हैं 🧱
कभी खेतों में अन्न का रंग भरते हैं 🌾
कभी छतों पर धूप के नीचे पिघलते हैं ☀️
तो कभी सड़कों की धूल में गुम हो जाते हैं 🛣️
ना छुट्टी की ज़िद, ना आराम का हक़,
बस दो वक़्त की रोटी और थोड़ा सा सुकून इनकी पूँजी।
पर हौसला देखो —
हर टूटे जूते में भी मंज़िल की आवाज़ होती है 👣
इनके हाथों में नसीब लिखा होता है ✋
और उनके पसीने में धरती की खुशबू होती है 🌍💧
मज़दूर — सिर्फ एक नाम नहीं,
ये वो नींव हैं, जिस पर खड़ा है ये पूरा जहां 🏗️
तो आज नहीं, हर दिन इन्हें सलाम हो,
हर पसीने की बूँद को प्रणाम हो।
✍️ राम रावत