🌙 "तुम्हारे नाम की ख़ामोशी – भाग 2" 🌙
तुम्हारा नाम...
अब मैं नहीं लेता ज़ोर से,
क्योंकि वो हर बार दिल को तोड़ जाता है,
हर बार मुझे तेरी आंखों का सन्नाटा याद दिला जाता है।
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अब मैं तुम्हें पुकारता नहीं,
पर हर ख़ामोशी में तुमसे बातें करता हूं।
जैसे रातें करती हैं चाँद से —
दूर रहकर भी, सबसे पास।
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तुम्हारे नाम की ख़ामोशी
अब मेरी आदत बन गई है।
हर सुबह तेरे बिना शुरू होती है,
और हर रात... तेरे ख्यालों में डूब जाती है।
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लोग पूछते हैं —
"क्या अब भी तुझसे मोहब्बत है?"
मैं मुस्कुरा देता हूं...
क्योंकि मोहब्बत अब इबादत हो चुकी है —
जहाँ नाम नहीं लिया जाता,
बस महसूस किया जाता है।
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तुम्हारे नाम की ख़ामोशी,
अब शोर से प्यारी लगती है।
क्योंकि उस चुप्पी में भी,
बस "तुम" ही सुनाई देते हो।