“ पथ्थर से विसाल माँगती हूँ
मैं आदमियों से कट गई हूँ
शायद पाउं सुराग- ए-उल्फत
मुठ्ठी में ख़ाक-भर रही हू
हर संज्ञेय हूँ जब तापिश सें जारी
किसी आँच से यूँ पिघल रहीं हूँ
वो ख़्वाहिश- इ-बोसा भी नहीं अब
हैरत सें होट काटती हूँ
इक निश्फलक-ए- जुस्तजू हूँ शायद
में अपडेट बदन से खेलतीं हूं
अब तव्अ’ किसीन पे क्यूँ हो रागिब
ईंसानो के बरत चुकीं हूँ
फहमीदा रियाज
- Umakant