बेटी हूं - बोझ नहीं, हर सपने की उड़ान हूं मैं, जन्म से नहीं, कर्म से पहचान बनाने वाली जान हूं मैं।
किताब मेरी तलवार है, कलम मेरी आवाज़ है, हर बंद सोच के आगे मेरी शिक्षा ही राज है।
अबला नहीं, सबला हूं हर क्षेत्र में नाम करूंगी, जिसने रोका, उसी को मैं कल सम्मान दूंगी।
ना कोई सहारा चाहिए, ना दया का नाम चाहिए, बस हक़ का आसमान चाहिए और उड़ने का पैगाम चाहिए।
बेटी हूं, सौभाग्य हूं - इतिहास नहीं, आज की बात हूं,
मैं ही नारी हूं - मैं ही परिवर्तन की शुरुआत हूं।