रुकूंगा नहीं!"
हाँ, थका हूँ... पर हारा नहीं, अंधेरे में हूँ... पर बुझा नहीं।
सपने छोटे हैं, पर दिल बड़ा है, रास्ता लंबा है, पर इरादा खड़ा है।
हर गिरावट से कुछ सीखा है मैंने, हर दर्द को अपना साथी बनाया है मैंने।
कभी कांप गया था हालातों से, पर झुका नहीं तक़दीर के सवालों से l
गिरा, फिसला, टूटा, फिर जुड़ा, और हर बार थोड़ा और मजबूत हुआ।
मंज़िल दूर थी, पर नज़र साफ़ थी, रास्ता कठिन था, पर चाल मेरे पास थी।
मेरी मेहनत मेरा हथियार बनी, मेरी चुप्पी मेरी ललकार बनी।
हर हार मेरे लिए एक नई तैयारी थी, हर आँसू मेरे भीतर छुपी चिंगारी थी।
थोड़ा थका ज़रूर हूँ, पर अब रुकना नहीं सीखा है।
जिस दिन रुका, उस दिन मिट जाऊँगा, इसलिए अब सिर्फ़ चलूंगा... और बन जाऊँगा।
** क्योंकि मैंने ठान लिया है अब कुछ भी हो... मैं रुकूंगा नहीं!!