शास्त्र के शब्द —
बिना अनुभव के —
बस ठंडी राख हैं।
उनमें कोई ताप नहीं, कोई जलन नहीं,
जो भीतर सवाल जला दे।
इसलिए लोग इन शब्दों से खेलते रहते हैं,
पर आग को छूने का साहस नहीं करते।
राख तो तुम्हें कभी चोट नहीं देगी,
लेकिन आग तुम्हें बदल देगी।
मूल रहस्य —
जिस दृष्टि से शास्त्र रचे गए थे —
वह दृष्टि तुम्हारे पास नहीं है,
क्योंकि तुम केवल शब्दों से चिपके हो,
और अनुभव से दूर हो।
जब बोध जागेगा,
तभी इन शब्दों में आग दिखेगी।
तब वही राख अंगार बन जाएगी।
वरना —
शब्द तुम्हें केवल सपना और विश्वास देंगे,
सत्य नहीं।
अज्ञात अज्ञानी