शीशे के भीतर
दर्पण जैसा था मेरा हृदय,
साफ़, सच्चा, पारदर्शी...
पर जब तुमने मुझे समझा नहीं,
तो चकनाचूर हो गया —
सौ टुकड़ों में बिखर गया मैं,
अपने ही भीतर के शीशे पर।
अब कौन झाँकेगा उस शीशे के भीतर?
कौन देखेगा वो सच्चाई,
जो टूटी पर अब भी ज़िंदा है?
क्योंकि हर टुकड़े में —
तेरी ही छवि है बस...
हर चमक में तेरा नाम,
हर दरार में तेरी याद।
तुमने देखा मुझे औरों की नज़रों से,
इसलिए खुद की आँखों से कभी नहीं।
वो नहीं चाहते थे हमें एक साथ देखना,
और देखो —
वो जीत गए,
मैं हार गई...
पर उस हार में भी,
हर टुकड़ा तेरा आईना बन गया।
अब जब भी कोई मुझे जोड़ने की कोशिश करता है,
मैं मुस्कुरा देती हूँ —
क्योंकि जो एक बार टूटा,
वो अब किसी का नहीं,
सिर्फ़ तेरी छवि का घर बन गया है। 🥹