Hindi Quote in Blog by Agyat Agyani

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✧ शून्य — मौन सत्य ✧

✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲


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1. शून्य सत्य है, क्योंकि वह बदलकर भी नहीं बदलता।

संसार हर क्षण बदलता है — रूप, रंग, ताप, दिशा।
पर हर परिवर्तन के बाद भी जो “आधार” बना रहता है,
वही सत्य है — वही शून्य है।

जैसे लहरें उठती हैं, टूटती हैं,
पर सागर वही रहता है।
शून्य भी वैसा ही —
क्षण-क्षण अपने रूप बदलता है,
फिर उसी मूल शून्य में लौट आता है।

विज्ञान की भाषा में —
ऊर्जा न बनती है, न नष्ट होती है,
सिर्फ रूपांतरित होती है।
ध्यान की भाषा में —
सत्य न जन्म लेता है, न मरता है,
सिर्फ अपनी छाया बदलता है।


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2. शून्य वह घर है, जहाँ से सब आता और जहाँ सब लौट जाता।

हर तत्व — आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी —
शून्य की देह से निकला है।
वह सबका स्रोत है, और सबका अंत भी।

जैसे श्वास भीतर जाती और बाहर आती है,
वही गति ब्रह्मांड में चल रही है।
शून्य भीतर जाता है तो मौन बनता है,
बाहर आता है तो सृष्टि बनती है।

इसलिए सृष्टि कोई घटना नहीं —
शून्य की श्वास है।


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3. सृष्टि शून्य की “करवट” है।

जिसे हम समय, युग, परिवर्तन, इतिहास कहते हैं —
वह शून्य की करवटें हैं।
कभी वह आंख खोलता है — प्रकाश फैलता है,
कभी वह आंख मूँदता है — अंधकार छा जाता है।

यह करवट बदलने की लय ही ब्रह्मांड है।
हर निर्माण और संहार
उसकी एक-एक श्वास का उतार-चढ़ाव है।


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4. शून्य का घर गति नहीं — मौन है।

शून्य चलता नहीं,
चलने का परिणाम ही दुनिया है।
शून्य मौन है,
और उसी मौन के कंपन से समय और पदार्थ उत्पन्न होते हैं।

यह वैसा है जैसे —
नींद में सोया कोई विराट जीव,
जिसका एक छोटा सा करवट बदलना
हमारे लिए युग परिवर्तन बन जाता है।


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5. शून्य को हम शिव, विष्णु, या बुद्ध के प्रतीक से पहचान सकते हैं।

शिव — ध्यान में बैठे हैं, आँखें बंद।
विष्णु — शेष पर लेटे हैं, स्वप्न में ब्रह्मांड पलता है।
बुद्ध — मौन हैं, न जागृत न सोए।

तीनों प्रतीक एक ही बात कहते हैं —
“सत्य सोया नहीं है, वह मौन है।”
उसकी क्रियाएँ हमें गति जैसी लगती हैं,
पर उसकी प्रकृति स्थिर है।


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6. इसलिए ‘शून्य मौन’ — सत्य का सबसे सटीक नाम है।

शून्य को कहना “ईश्वर” — अपूर्ण है,
क्योंकि ईश्वर को हम व्यक्तित्व समझ लेते हैं।
शून्य को कहना “ऊर्जा” — अधूरा है,
क्योंकि ऊर्जा केवल उसका कार्य है।
शून्य को कहना “मौन” — सबसे समीप है,
क्योंकि मौन में ही वह श्वास लेता है।

शून्य मौन है — पर उसमें अनंत ब्रह्मांड छिपे हैं।
वह गतिहीन है — पर उससे सारी गति निकलती है।
वह शब्दरहित है — पर सभी शब्द उसी की प्रतिध्वनि हैं।


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7. सार-सूत्र

> सूत्र १: शून्य बदलता है, ताकि अपने न बदलने को सिद्ध कर सके।
सूत्र २: जो उत्पन्न होता है, वही समा जाता है — यही शून्य का चक्र है।
सूत्र ३: सृष्टि शून्य की करवट है; समय उसकी श्वास है।
सूत्र ४: मौन उसका निवास है, और गति उसका खेल।
सूत्र ५: शून्य मौन ही एकमात्र सत्य है — बाकी सब उसकी लहरें हैं।

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