ए जिंदगी अपना लिया तुझे जैसी तू है
थोड़ी तीखी थोड़ी खाली
थोड़ी नमकीन जो है.....
मैं हार गई तेरी बाहों में
तू जहां ले चल..
अब ना लडूंगी कि कुछ खास कर
तू जैसी जितनी है उतनी ही सही
मिला ना मन का लेकिन
जो मिला क्या वो बेहतर नहीं
तू जो वजह देगी मुस्कुरा दूंगी
तू जो रुला देगी तो
भीगी आंखों से तेरी बाहों में सो जाऊंगी
अगर नाराज रही तो मैं भी हंस के गुजर जाऊंगी
तुझे मना कर ही दम लूंगी
ए जिंदगी अपना लिया तुझे जैसी तू है
ना एक लफ्ज़ कहूंगी तेरी बदगुमानी में
ना तुझसे शिकायत करूंगी तेरी मनमानी में
ना हिसाब करूंगी कम ज्यादा का
बस गले लगा लूंगी भले हो दिल आधा सा
ना साथ छोडूंगी तेरा ना तुझे छोड़ने दूंगी
ए जिंदगी अपना लिया तुझे जैसी तू है
जो कभी आई कभी तुझसे उदासी
तो देख लूंगी तरसती आंखे अपनो के लिए
तो देख लूंगी सूखे चेहरे किसी प्यार के लिए
तो देख लूंगी सिकुड़े पेट भूख की तलाश में
तो देख लूंगी नंगे पैर अपनों की राहत में घूमते
तो देख लूंगी ठंड ठिठुरन को
तो देख लूंगी गर्मी की तपन को
फिर देख लूंगी उस असहाय की पुकार को
फिर देख लूंगी उस तड़पते बच्चे की मां
जो लिए गोद में दुआएं लिए बैठी है
जिंदगी से कुछ दिन मांग रही है
जो हर दिन जिन रही है इंतेज़ार कर रही है
उस मुस्कान का जब सब ठीक हो जाएगा
उसका बच्चा भी स्वस्थ होकर खेल पाएगा
ये देख के मेरा दिल भी भर आएगा
ए जिदंगी अपना लिया तुझे जैसी तू है