शान्त हो जा मन, शान्त हो जा
आयु भी शान्त हो चुकी,
घर की खिड़की पर
शान्त धूप आ चुकी है।
दृष्टि में आसमान आकर
लहराने लगा है,
तपस्वी सा खड़ा पहाड़
तृप्त लग रहा है।
दूरी नहीं नजदीकियां
पास आ गयी हैं,
मीठी बातें बोलकर
शान्त हो जा अदृष्ट मन।
सामने हिमालय के शिखर
शान्त दिख रहे हैं,
वृक्ष भी शान्त हैं
जल शान्त बह रहा है,
क्षितिज शान्ति की लकीर खींच चुका है।
फसलें शान्त हैं
खेत तृप्त हो चुके हैं,
हवायें शान्त होने के लिए
ऊपर उठ रही हैं,
शान्त हो जा मन, शान्त हो जा।
*** महेश रौतेला