Hindi Quote in Shayri by nidhi mishra

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बेटी और बाप की बातचीत के बोल
कलेक्टर जो खरीदा आपने कर्ज लेकर,
बन तो मैं भी सकती थी अगर आप मुझे पढ़ाते तो।
अपने हक़ के झोपड़े में ही रहती मालकिन की तरह,
अगर आप मुझे किसी महल के आंगन में यूँ नहीं दफनाते तो।
और मुझे परहेज़ थोड़ी है रसोई घर के तकलीफों से,
ज़रा सा ज़र्क़ अगर आप अपने बेटों को भी सिखाते तो।
और ज़माने से हारे आप और आपसे हारी मैं,
मज़ा तो तब था जब हम मिलके हराते ज़माने को।
और बाबा, आप क्या कहते थे?
आँगन की चिड़िया होती है बेटियाँ।
फिर मुझे यूँ खूँटे से क्यूँ बाँधा?
क्यों नहीं दिया आसमान, ऐसे ही उड़ जाने को?

Hindi Shayri by nidhi mishra : 112007228
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