“साथ-साथ जीवन की राह – भाग 4”
कुछ सालों बाद, विकास और अनामिका की जिंदगी फिर से व्यवस्थित लग रही थी। उनके बच्चे अब किशोरावस्था में थे और घर में खुशियों का माहौल था। लेकिन एक दिन अचानक अनामिका के पिता की तबियत गंभीर हो गई।
अनामिका की शादी के समय से ही उनके पिता ने कभी पूरी तरह उसके करियर और स्वतंत्र निर्णय को स्वीकार नहीं किया था। अब उनका इलाज बहुत महंगा था और विकास के ऑफिस में फिर से वित्तीय संकट आ गया।
विकास और अनामिका ने मिलकर यह फैसला किया कि वे पिता की देखभाल और इलाज के लिए शहर छोड़ देंगे। बच्चों के स्कूल और परिवार को संभालना आसान नहीं था।
इसी बीच, विकास के ऑफिस में एक प्रतियोगिता की घोषणा हुई। अगर विकास जीतता है तो उसे उच्च पद और वित्तीय सुरक्षा मिल सकती थी। लेकिन इसका मतलब था कि वह पूरे महीने घर से दूर रहे।
अनामिका ने उसे रोकने के बजाय कहा,
“विकास, यह तुम्हारे लिए एक अवसर है। मैं घर संभाल लूँगी, तुम्हें मौका लेना चाहिए। हम साथ हैं, याद है?”
विकास ने अनामिका को देखा और उसकी आँखों में अपने प्यार और भरोसे को महसूस किया। उसने प्रतियोगिता में भाग लिया और कड़ी मेहनत के बाद जीत गया। वित्तीय संकट समाप्त हुआ।
घर लौटने पर, अनामिका ने उसे सरप्राइज दिया। उसने घर सजाया, बच्चों के साथ स्वागत किया और खुद भी एक सुंदर पोशाक में इंतजार कर रही थी। विकास ने उसे देखा और कहा,
“तुम्हारा हर कदम, तुम्हारा हर भरोसा और प्यार ही मेरी ताकत है। तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं।”
अनामिका ने हँसते हुए कहा,
“और तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं। हम दोनों मिलकर हर संकट को पार कर सकते हैं।”
फिर, उस रात दोनों ने बच्चों को सोने के बाद पुरानी यादों और अपने प्यार के पल याद किए। विकास ने अनामिका के हाथों को पकड़ा और कहा,
“हमारी जिंदगी में चाहे कितने भी तूफान आएँ, हम हमेशा साथ रहेंगे। यही सच्चा प्यार है।”
और इस तरह, विकास और अनामिका ने साबित किया कि असली प्यार कठिनाइयों में झुकता नहीं, बल्कि और मजबूत होकर खिलता है।