मोहब्बत और ज़िन्दगी
वो मोहब्बत को जितने निकले हैं,
वो ज़िन्दगी में बीतने निकले हैं।
ख्वाबों की झोली भर लाए थे,
पर नींद में ही रीतने निकले हैं।
जिसे जीत समझा था बाज़ी में,
वो खुद से ही हारने निकले हैं।
हर मोड़ पे शीशे टूटे हैं,
फिर भी मुस्कानों को सीतने निकले हैं।
इश्क़ का पंछी ऊँचा उड़ा,
पर पंख जमीं में गींतने निकले हैं।
वो जिनको फ़तह का गुमान था,
वो वक़्त से ही सीखने निकले हैं।
मोहब्बत में जो सब हार गए,
अक्सर वही खुद को पाने निकले हैं।
आर्यमौलिक