काम रति काव्य
आलिंगन
रजनी ओढ़े चाँद सजीला, फूल लुटाएँ गंधी।
शीतल पवन सँवारे केशों, झूम उठे हर कली॥
प्रियतम ने आलिंगन कसकर, तन को तन से बाँधा।
नयनों से नयनों को पीकर, हृदय-तरंगों साधा॥
स्पर्श जगा जब रोम-रोम में, वासना की धारा।
कंपित उर पर श्वास घुली तब, मत्त हुई मधुहारा॥
दृग-दृग में दीपक प्रज्वलित, अग्नि बनी संयोगी।
आलिंगन में जगत भुलाकर, खो गए अनुरागी॥