"समर्पण"
तुम खोजो ब्रह्म,
मैं तुम्हें खोजूँगा।
तुम ढूँढो मुक्ति,
मैं तुम्हें ढूँढूँगा।
तुम बनो प्रकाश,
मैं दिशा हो जाऊँ।
तुम रहो अकेले,
मैं सदा संग आऊँ।
तुम बनो सन्नाटा,
मैं ध्वनि में गाऊँ।
तुम बनो विरक्ति,
मैं प्रेम बरसाऊँ।
तुम हो गगन सा,
मैं पवन बन बहूँ।
तुम हो नयन सा,
मैं स्वप्न बन कहूँ।
तुम खोजो छाया,
मैं धूप में आऊँ।
तुम रोओ चुपचाप,
मैं अश्रु में गाऊँ।
तुम बनो तपस्वी,
मैं भाव बन जाऊँ।
तुम खोजो अंत,
मैं लय में समाऊँ।
तुम रहो जहाँ भी,
मैं वहीं मिलूँगा।
तुम जिसे बुलाओ,
मैं वही सुनूंगा
- पवन कुमार शुक्ल