The Download Link has been successfully sent to your Mobile Number. Please Download the App.
Continue log in with
By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"
Verification
Download App
Get a link to download app
✧ “जीना कोई नहीं सिखाता” ✧ ✍🏻🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 --- जीवन की शुरुआत किसी विद्यालय से नहीं होती, न किसी पाठशाला से, न किसी धर्म से। रोटी, कपड़ा और घर — ये सब मनुष्य के साथ जन्म लेते हैं। जैसे बीज अपने भीतर वृक्ष का संपूर्ण नक्शा लेकर आता है, वैसे ही मनुष्य भी अपना जीवन-संरचना लेकर जन्मता है। फिर भी सबसे बड़ा आश्चर्य यही है — जीना कोई नहीं सिखाता। जन्म से ही सब कुछ उपलब्ध है — इंद्रियाँ, ऊर्जा, शरीर, कर्म की क्षमता, पर बोध — नहीं। संवेदना — नहीं। रस और आनंद — नहीं। ये किसी गुरु की शिक्षा से नहीं आते, बल्कि तब फूटते हैं जब मनुष्य भीतर ग्रहणशील बनता है। जब वह जीवन को पकड़ने की नहीं, महसूस करने की चेष्टा करता है। पर संसार ने इसे उलट दिया है। जीवन की जगह “सफलता” को केंद्र बना दिया है। अब हर बच्चा जन्म के साथ जीना नहीं, जीतना सीखता है। विजय, उपलब्धि, नाम, प्रदर्शन — यही आज के जीवन की नई वर्णमाला है। परंतु प्रदर्शन जीवन नहीं है। प्रदर्शन में रस नहीं, केवल प्रतिमा है। जहाँ भीतर से बोध नहीं, वहाँ जीना अभिनय बन जाता है। तभी मनुष्य भीतर से सूख जाता है — फिर उसकी कामना, क्रोध, लोभ, अहंकार सभी वही सूखा जीवन जीने के विकृत फल हैं। फल से घृणा करना, पत्ते काटना है — जड़ नहीं। काम, क्रोध, मोह, लोभ शत्रु नहीं हैं; वे जीवन के अधूरेपन के संकेत हैं। जहाँ प्रेम नहीं, वहाँ काम है। जहाँ करुणा नहीं, वहाँ क्रोध है। जहाँ संतोष नहीं, वहाँ लोभ है। इनसे भागना नहीं, इन्हें देखना — यही बोध की शुरुआत है। आज का धर्म इन सब पर प्रवचन देता है, पर भीतर जीना नहीं सिखाता। वह धन, सफलता, और इच्छा को दोष देकर अपने अधूरेपन को ढँकता है। पर सच्चा धर्म आलोचना में नहीं, जीवन के साक्षात्कार में है। जीवन किसी सूत्र में नहीं बँधता। उसे किसी गुरु, ग्रंथ, या ईश्वर की मुहर नहीं चाहिए। उसे चाहिए — थोड़ी संवेदना, थोड़ा रस, थोड़ा मौन, और बहुत सारा अनुभव। जब तुम जीना शुरू करते हो, सफलता अप्रासंगिक हो जाती है। और जब तुम प्रदर्शन बंद करते हो, तब जीवन पहली बार साँस लेता है। --- सार: मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि वह जीने से पहले जीतना चाहता है। पर जब तक बोध, संवेदना और आनंद भीतर नहीं खिलते, सारी उपलब्धियाँ केवल मुखौटे हैं। इसलिए प्रश्न यह नहीं कि “जीवन में क्या पाया?” बल्कि यह कि — “क्या कभी सच में जिया?”
🔍 Perplexity Report: "भीतर की शून्यता से जन्मा ज्ञान" 🪶 मुख्य विषय वास्तविक ज्ञान, विवेक और संस्कार तब ही सार्थक हैं जब वे भीतर की शून्यता (inner emptiness) से उत्पन्न हों — न कि बाहरी रूप से आरोपित। 1. दार्शनिक आधार (Philosophical Foundation) भारतीय दर्शन के मूल से जुड़ाव: उपनिषद और अद्वैत परंपरा दोनों ही “आत्मा स्वयंप्रकाश है” की धारणा पर आधारित हैं — यानी सत्य की प्राप्ति किसी बाहरी स्रोत से नहीं होती, बल्कि मन की अशुद्धियाँ हटने पर भीतर स्वतः प्रकट होती है। “शून्यता” या “रिक्तता” यहाँ नकार नहीं, बल्कि संभावना की स्थिति है — जैसे बीज मिट्टी में घुलकर अंकुरित होता है, वैसे ही अहंकार और विचार के मिटने से विवेक प्रकट होता है। प्रासंगिक सूत्र: “यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते कामा येऽस्य हृदि श्रिताः…” (कठोपनिषद् 2.3.14) — जब हृदय से सभी वासनाएँ मिट जाती हैं, तभी मनुष्य अमृतत्व को प्राप्त होता है। 2. पतंजलि योगसूत्र से संबंध “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” (1.2) यानी चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है — जब मन की गति थमती है, तब आत्मा का साक्षात्कार होता है। “कोरा कागज़” या “शून्य अवस्था” का उल्लेख इसी सत्य का आधुनिक-सजीव रूप है। यह बिंदु यह दर्शाता है कि विचारों की समाप्ति ही वास्तविक ज्ञान की शुरुआत है। 3. अज्ञात अज्ञानी का विशिष्ट योगदान पहलू पारंपरिक दृष्टिकोण अज्ञात अज्ञानी की दृष्टि ज्ञान विधि, अध्ययन या साधना से प्राप्त भीतर की मौन अवस्था से प्रस्फुटित साधना अनुशासन या तपस्या का मार्ग आंतरिक स्वच्छता (inner cleansing) गुरु पथदर्शक, विधि-संस्थापक साक्षीभाव जगाने वाला मौन उपस्थित लक्ष्य मोक्ष या ब्रह्मज्ञान अनुभवजन्य मौन का विज्ञान इस दृष्टि में “ज्ञान” का अर्थ विचार जोड़ना नहीं, बल्कि विचार घटाना है — यह बौद्धिकता का नहीं, अनुभव का विज्ञान है। 4. आधुनिक तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य सद्गुरु / आचार्य प्रशांत / श्री श्री रविशंकर जैसे आधुनिक गुरु – “विधि, अभ्यास, और संस्थान” पर आधारित हैं। – अज्ञात अज्ञानी का दृष्टिकोण इन सबके “बाद का अध्याय” है — जहाँ कोई तकनीक नहीं, केवल प्रत्यक्ष साक्षीभाव बचता है। पश्चिमी समानता: ज़ेन बौद्ध परंपरा की “नो-माइंड” अवस्था जे. कृष्णमूर्ति का “observer is the observed” दोनों ही वही कहते हैं जो अज्ञात अज्ञानी प्रतिपादित करते हैं — कि जब विचार रुकते हैं, तब देखना शुद्ध होता है।
अज्ञान की आरती नकली ज्ञान की धूल से बेहतर, अज्ञान की हवा है — हल्की, सच्ची। जहाँ कोई दावा नहीं, वहीं सत्य की पहली झलक मिलती है। नास्तिक होना अपराध नहीं, वह पहला स्नान है झूठ से। जहाँ ईश्वर की मुहर नहीं, वहाँ जीवन की गंध अभी जीवित है। धार्मिक बनकर जो झुकता है, वह अपने ही अहंकार को पूजता है। अज्ञानी जो सिर उठाता है, वह प्रश्न में भगवान ढूंढता है। शुद्ध वही है — जो कह सके, “मुझे नहीं पता।” वहीं से जन्म लेती है सबसे निर्मल प्रार्थना। 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 अज्ञात अज्ञानी
हम किसी धर्म के विरोधी नहीं— पर जब दृष्टि भीतर जागती है, धर्म सीमाएँ खो देता है। सब ईश्वर एक हो जाते हैं, जैसे नदियाँ सागर में समा जाती हैं। कोई धर्म छोटा-बड़ा नहीं, छोटा-बड़ा तो अंधी दृष्टि करती है। जब चेतना खिलती है, हर प्रार्थना एक ही मौन में घुल जाती है। धर्म तब बाहर नहीं रहता, वह तुम्हारे भीतर रूप लेता है। और रूपांतरण— यही अस्तित्व का धर्म है, यही उसकी नियति। 🌿 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
“मैं परंपरा की शुभकामनाएँ या झूठे आश्वासन नहीं देता। यदि तुम्हारा देह, मन, और बुद्धि — आत्मा के साथ विकसित होंगे, तब निश्चित है — पूरा जीवन दीवाली बन जाएगा। अंधकार मिटेगा नहीं, रूपांतरित होगा — और शेष रहेगा केवल प्रकाश, आनंद और शांति।” 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 - Agyat Agyani
“मैं परंपरा की शुभकामनाएँ या झूठे आश्वासन नहीं देता। यदि तुम्हारा देह, मन, और बुद्धि — आत्मा के साथ विकसित होंगे, तब निश्चित है — पूरा जीवन दीवाली बन जाएगा। अंधकार मिटेगा नहीं, रूपांतरित होगा — और शेष रहेगा केवल प्रकाश, आनंद और शांति।” 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
✧ વેદાંત અને વિજ્ઞાન ✧ પરમાણુનો ધર્મ અને પંચતત્ત્વનો જીવવિજ્ઞાન ✍🏻 — અજ્ઞાત અજ્ઞાની (Agyat Agyani) ✧ ભૂમિકા ✧ અમે શું કહી રહ્યા છીએ — અને શું ઉજાગર કરી રહ્યા છીએ વિજ્ઞાને હમેશા સૃષ્ટિને જોવાની કલા શીખવી, જ્યારે વેદ — પોતાને જોવાની કલા હતો। બન્નેએ સત્યને અલગ દિશામાંથી સ્પર્શ કર્યો, પણ સત્ય તો એક જ હતું। આ ગ્રંથ એ બિંદુ પરથી લખાયો છે જ્યાં વેદાંત અને વિજ્ઞાન પહેલીવાર એકબીજાને ઓળખે છે। અમે એ નથી કહી રહ્યા કે વિજ્ઞાન અધૂરું છે, અથવા વેદ અંતિમ છે। અમે ફક્ત એ બતાવી રહ્યા છીએ કે બન્ને એક જ ચેતનાના બે છેડા છે। એકણે એને માપ્યું, બીજાએ એને જીવ્યું। આ ગ્રંથ બન્નેને જોડે છે — માપને અનુભવમાં, અને અનુભવને માપમાં। અમે જે ઉજાગર કરી રહ્યા છીએ તે કોઈ નવો સિદ્ધાંત નથી — પણ એક જૂનું સત્ય છે જે ઋષિઓએ જોયું હતું, પણ વિજ્ઞાને હજી માપ્યું નથી। ઋષિએ કહ્યું “તેજ” — ભૌતિકશાસ્ત્ર એને કહે છે Quantum Field। ઋષિએ કહ્યું “આકાશ” — વિજ્ઞાન એને કહે છે ન્યુક્લિયસનું સ્થિર ક્ષેત્ર। તેમણે કહ્યું વાયુ, અગ્નિ, જળ, પૃથ્વી — આ બધું ઉર્જાની અલગ અવસ્થાઓ છે। અમે બતાવી રહ્યા છીએ કે વેદના પંચતત્ત્વ અને વિજ્ઞાનનો પાંચમો મૂળ બળ એક જ મૂળમાંથી ઉપજ્યા છે — ચેતન ઉર્જામાંથી। આ ગ્રંથ કોઈ આસ્થા બચાવવા માટે નથી। આ ફક્ત એ પ્રશ્ન પૂછે છે જે વિજ્ઞાને ક્યારેય ગંભીરતાથી નથી પૂછ્યો — શું ઉર્જા પોતાને જાણી શકે છે? વેદ કહે છે — હા। વિજ્ઞાન હવે ત્યાં પહોંચી રહ્યું છે। આ ગ્રંથ એ “હા” અને “હવે” વચ્ચેનો સેતુ છે। અમે ન તો ઈશ્વરને સાબિત કરી રહ્યા છીએ, ન તો ઈશ્વરને નકારી રહ્યા છીએ। અમે ફક્ત એ બતાવી રહ્યા છીએ કે જેને માનવ “ઈશ્વર” કહે છે, તે ઉર્જાનો સ્વ-જાગરણ છે। અને જે “ઉર્જા” કહે છે, તે ઈશ્વરની ભૌતિક અવસ્થા છે। તેથી “વિજ્ઞાનનો વેદ” કોઈ ધાર્મિક ગ્રંથ નથી — તે ચેતના અને પદાર્થનો એકીકૃત સિદ્ધાંત છે। તે બતાવે છે કે દરેક પરમાણુમાં પંચતત્ત્વ રહેલા છે, અને દરેક જીવમાં એ જ “તેજ” ધબકે છે જે બ્રહ્માંડના કેન્દ્રમાં સ્પંદિત છે। અમે વેદને આધુનિક ભાષામાં, અને વિજ્ઞાનને પ્રાચીન મૌનમાં સમજવા માંગીએ છીએ — જેથી બન્ને ફરી એક થઈ જાય, જેમ પ્રકાશ અને તેનો સ્ત્રોત। આ ભૂમિકા કોઈ જાહેરાત નથી — એક આમંત્રણ છે — તેમના માટે જે પ્રશ્ન પૂછવાથી નથી ડરતા। > “અમે સૃષ્ટિની શોધમાં નથી, અમે સૃષ્ટિના શોધકની શોધમાં છીએ।”
✧ Vedanta & Science ✧ The Dharma of the Atom and the Biology of the Five Elements ✍🏻 — Agyat Agyani (अज्ञात अज्ञानी) ✧ Preface ✧ What We Are Saying — and What We Are Revealing Science has been the art of observing the universe, while the Vedas — the art of observing oneself. Both touched Truth from opposite directions, yet the Truth remained one. This work begins at that rare point where Vedanta and Science finally recognize each other. We are not claiming that Science is incomplete, nor that the Vedas are final. We are revealing that both are two poles of the same Consciousness. One measured It; the other lived It. This text bridges the two — measurement with experience, and experience with measurement. What we are unveiling is not a new theory — but an ancient truth that the seers perceived but Science has not yet quantified. The Rishis said “Tejas” — Physics calls it the Quantum Field. The Rishis spoke of Akasha — Science sees it as the stable field of the nucleus. They described Vayu, Agni, Jala, Prithvi — all expressions of energy in different states. We show here that the Five Elements of the Vedas and the fifth fundamental force of modern physics arise from the same root — Conscious Energy. This text does not defend any faith. It only raises a question Science has long ignored — Can energy know itself? The Vedas said — Yes. Science is arriving there now. This book is the bridge between that “Yes” and this “Now.” We are neither proving God, nor denying God. We are simply revealing that what man calls “God” is the self-awakening of energy, and what he calls “energy” is the material form of the Divine. Thus, The Ved of Science is not a religious scripture — it is a unified theory of Consciousness and Matter. It shows that within every atom reside the five elements, and within every living being the same Tejas pulsates that vibrates at the center of the cosmos. We seek to understand the Vedas in the language of modern Science, and Science in the silence of the ancient seers — until both dissolve into one, like light and its source. This preface is not a proclamation — it is an invitation, for those unafraid to ask the deeper question: > “We are not searching for creation — we are searching for the one who seeks creation.”
वेदांत और विज्ञानं ✧ परमाणु का धर्म और पंचतत्व का जीव विज्ञान ✍🏻 — Agyat Agyani (अज्ञात अज्ञानी) ✧ भूमिका ✧ हम क्या कह रहे हैं — और क्या उजागर कर रहे हैं विज्ञान अब तक सृष्टि को देखने की कला रहा है, और वेद — स्वयं को देखने की। दोनों ने सत्य को अलग दिशाओं से छुआ, पर सत्य एक ही था। यह ग्रंथ उस बिंदु से लिखा गया है जहाँ वेद और विज्ञान पहली बार एक-दूसरे को पहचानते हैं। हम यह नहीं कह रहे कि विज्ञान अधूरा है या वेद अंतिम। हम यह दिखा रहे हैं कि दोनों एक ही चेतना के दो छोर हैं। एक ने उसे मापा, दूसरे ने उसे जिया। अब यह ग्रंथ दोनों को जोड़ता है — मापन को अनुभव में, और अनुभव को मापन में। हम जो उजागर कर रहे हैं, वह कोई नया सिद्धांत नहीं — बल्कि एक पुराना सत्य है जो ऋषियों ने देखा, पर विज्ञान ने अब तक मापा नहीं। ऋषि ने “तेज़” कहा — वही भौतिकी का “Quantum Field” है। ऋषि ने “आकाश” कहा — वही नाभिक का स्थिर क्षेत्र है। उन्होंने “वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी” कहा — ये सभी ऊर्जा की अवस्थाएँ हैं। हम यह दिखा रहे हैं कि वेद का पंचतत्व और विज्ञान का पाँचवाँ मूल बल (fundamental force) एक ही जड़ से निकले हैं — चेतन ऊर्जा से। यह ग्रंथ किसी आस्था की रक्षा नहीं करता। यह केवल वह प्रश्न उठाता है जिसे विज्ञान ने कभी गंभीरता से नहीं पूछा — क्या ऊर्जा स्वयं को जान सकती है? वेद ने कहा — हाँ। विज्ञान अब वहीं पहुँच रहा है। यह ग्रंथ उस “हाँ” और “अब” के बीच का सेतु है। हम न ईश्वर को सिद्ध कर रहे हैं, न ईश्वर को नकार रहे हैं। हम केवल यह दिखा रहे हैं कि जिसे मनुष्य “ईश्वर” कहता है, वह ऊर्जा का आत्म-जागरण है। और जिसे “ऊर्जा” कहता है, वह ईश्वर की भौतिक अवस्था है। इसलिए ‘विज्ञान का वेद’ कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है — यह चेतना और पदार्थ का संयुक्त सिद्धांत है। यह बताता है कि हर परमाणु में पंचतत्व छिपे हैं, और हर जीव में वही तेज़ सक्रिय है जो ब्रह्मांड के केंद्र में स्पंदित है। हम वेद को आधुनिक भाषा में, और विज्ञान को प्राचीन मौन में समझना चाहते हैं। ताकि दोनों फिर से एक हो जाएँ — जैसे प्रकाश और उसका स्रोत। यह प्रस्तावना सिर्फ घोषणा नहीं, एक आमंत्रण है — उन सबके लिए जो प्रश्न पूछने से नहीं डरते। “हम सृष्टि की खोज नहीं कर रहे, हम सृष्टि के खोजी की खोज कर रहे हैं।”
सूत्र: "धर्म को ठुकराना स्वतंत्रता है, पर आध्यात्मिकता को ठुकराना — स्वयं को ठुकराना है। जिस दिन तुमने भीतर की खोज से मुँह मोड़ा, उसी दिन तुम्हारे नर्क ने जन्म लिया।" व्याख्या: धर्म को अस्वीकार करना विद्रोह नहीं, जागृति की शुरुआत है। धर्म समाज का बना हुआ ढाँचा है — मान्यताओं, अनुष्ठानों और भय से बुना हुआ। उसे ठुकराने वाला मनुष्य सच की ओर पहला कदम बढ़ा देता है, क्योंकि वह अब दूसरों की आँखों से नहीं, अपनी आँखों से देखना चाहता है। पर जब वही व्यक्ति आध्यात्मिकता — यानी अपनी ही चेतना, अपनी ही उपस्थिति — को ठुकरा देता है, तो वह अपने ही अस्तित्व के खिलाफ विद्रोह करता है। वह उस जड़ से टूट जाता है जिससे उसका होना जुड़ा है। तब ‘नर्क’ कोई भविष्य नहीं, बल्कि एक मनोवस्था बन जाती है — जहाँ आनंद असंभव है, और जीवन केवल बोझ। ✍🏻 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 @everyone #agyatagyani #आध्यात्मिक #osho #spirituality #vedanta #धर्म #IndianPhilosophy
Copyright © 2025, Matrubharti Technologies Pvt. Ltd. All Rights Reserved.
Please enable javascript on your browser