"स्याही की चुप्पी"
......................
अब कविता में बात
नहीं करूँगा,
सीधे-सीधे कहूँगा।
जो दिल में है
वो छुपाऊँगा नहीं,
झूठे शब्दों से
सँवारूँगा नहीं।
थक गया हूँ अब
इशारों की चाल से,
मन की बात कहूँगा
अपने ही हाल से।
जो पीड़ा है,
वो कहूँगा साफ़,
न कोई घुमाव
न कोई नक़ाब।
जब तक तुम
सुनोगी नहीं,
तब तक मैं
कुछ लिखूँगा नहीं।
हर शब्द में तुम
साथ हो,
बिना तुम्हारे मैं
कुछ सोचूँगा नहीं।
स्याही भी अब
रुक गई है हाथों में,
तुम्हारी आवाज़ नहीं
तो क्या अर्थ बातों में।
मन में जो भाव हैं,
वे भी अब थमे हैं,
तुम बिन ये शब्द
काग़ज़ पर भी रुके हैं।
जब तक मन से
बुलाओ नहीं,
मैं स्वयं को भी
लिख नही पाऊगा कहीं.
-पवन कुमार शुक्ल