लेखक: अवनीश सिंह
मुझे तिरंगे से प्यार है,
इस मिट्टी से, उस पहरेदार से।
जो सीमा पर बिछा हुआ है,
सिर झुकता है उस त्यागी संसार से।
ना माँगूं महल, ना राज ताज,
बस मेरा भारत रहे सरताज।
जहाँ हर दिल में भाईचारा हो,
और हाथों में हो कामकाज।
शहीदों की वो जलती चिता,
हर रात मुझे आवाज़ दे।
"मत चुप रहो, उठो बोलो,
देश को अब अंदाज़ दो!"
मैं कलम उठाऊँ या बंदूक,
बस सच्चाई की राह चलूँ।
सत्य, धर्म, और निष्ठा के संग,
भारत माँ के काम आ सकूँ।
वतन के वास्ते जो जिए,
वो जीवन सफल कहलाए।
अवनीश कहे—चलो साथियों,
अब भारत को फिर से चमकाएँ।