★.. चैप्टर–03–मुहम्मद एक मानसिक रोगी (a)
नार्सीसिज्म के साथ अक्सर कई विकार पैदा होते हैं । इसी तरह चिकित्सीय भाषा में कहें तो टीएलई से पीड़ित मरीज में सामान्यतः अनेक मनोवैज्ञानिक रोग पाए जाते हैं । इस अध्याय में हम मुहम्मद के मनोविकारों को इस पहलू से जानने का प्रयास करेंगे । इस बात के तमाम संकेत हैं कि मुहम्मद ऑब्सेसिव-कम्पलसिव डिस्ऑर्डर से ग्रस्त था।
ऑम्मेप्तिव-कम्पलपग्तिव डिस्ऑरईर
कनाडा के मानसिक स्वास्थ्य एसोसिएशन के अनुसार, सनक और जिद भरे कई विकार (ऑब्सेसिवकम्पलसिव डिस्ऑर्डर-ओसीडी ) मनुष्यों में मानसिक परेशानी या चिंता पैदा करते हैं। यह चिकित्सीय विकारों का समूह होता है, जो इंसान के विचारों, व्यवहार, भावनाओं और संवेदना पर प्रभाव डालता है।
सामूहिक रूप से ये समस्याएं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में सर्वाधिक पाई जाती हैं| ऐसा अनुमान है कि दस में हर एक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी इस तरह की समस्याओं की चपेट में आता ही है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति के मन में ऊलजुलूल विचार आते हैं और वह उनमें उलझा रहता है । ये विचार उन व्यक्तियों को मजबूरी में उन ऊलजुलूल कार्यों को करने की ओर ले जाता है। कभी-कभी तो दिन में कई घंटों तक वह ऐसे सनक भरे कार्यों को करता रहता है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति का गुमसुम रहना, दुखी रहना, हर बात में शक करना, अंधविश्वासी होना और रुढ़ियों को लेकर लकौर का फकीर होने की समस्या आम है । ये विकार तब होता है जब दुख या संताप लंबे समय तक बना रहे और व्यक्ति रुढ़ियों में इस कदर जकड़ा रहे कि वो उसके सामान्य जीवन पर असर डालने लगे।
ओसीडी तब होता है जब किसी के मन में दुख गहरे बैठ जाए और वह व्यक्ति कुछ खास हरकतों अथवा कर्मकांड के प्रति सनकी की तरह इतना आग्रही हो जाए कि इससे उसका जीवन प्रभावित होने लगे । यह कुछ ऐसा होता है, जैसे कि मान लीजिए मस्तिष्क विनाइल का बना हुआ रिकार्ड है तो जैसे यदि रिकार्ड पर खरोंच लग जाए तो रिकार्ड प्लेयर पर चलाने पर सूई एक जगह बार-बार अटक जाती है और गाने का कोई विशेष भाग बार-बार बजने लगता है।
किसी चीज के प्रति अनावश्यक रूप से आग्रही होने, तर्कहीन व निराधार भावों, विचारों, कल्पनाओं और संवेगों का लगातार बने रहना मनोविकार होता है । सामान्य ओसीडी आदतें अशुद्धता, संदेह और परेशान करने वाली यौनिक अथवा धार्मिक विचार के इर्दगिर्द घूमती हैं। अक्सर किसी व्यक्ति में भय, घृणा और संदेह अथवा कुछ खास गतिविधियों को लेकर ऐसी धारणा पाल लेने के कारण ऐसी सनक चढ़ जाती है कि व्यक्ति इन हरकतों को बार-बार करता है। ओसीडी से ग्रस्त लोग अपनी सनकी गतिविधियों को बारंबार और निश्चित तरीके से करके खुद को हल्का करने की कोशिश करते हैं। ओसीडी से पीड़ित बच्चों को कई और मनोविकारों की चपेट में आने की आशंका होती है। इन बच्चों में बात-बात पर डरने, समाज से दूर भागने की प्रवृत्ति, अवसाद, सीखने में कठिनाई महसूस करना, पेशियों में खिंचाव महसूस करने की समस्या, विघटनकारी व्यवहार और स्वयं को कुरूप मानने (काल्पनिक कुरूपता) जैसी समस्याएं आ सकती हैं |“
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह माना जा सकता है कि मुहम्मद उद्देग संबंधी मनोविकार से भी पीड़ित था। वजू कैसे करना है, कितनी बार नमाज पढ़नी है और किस तरह पढ़नी है, इन बातों को लेकर वह लकीर का फकीर था। उसने इसी के चलते छोटी-छोटी बातों जैसे चेहरा कैसे धोएं, नाक कैसे धोएं, कान व हाथ कैसे धोएं और किस क्रम में ये काम करें आदि के बारे में भी विस्तार से बताया है| हालांकि ये सारी बातें निरर्थक हैं, लेकिन उसके लिए ये बहुत महत्वपूर्ण थीं। मुहम्मद की इन बातों को जानकर यह समझना कठिन नहीं है कि वह ओसीडी से पीड़ित था । ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति प्रतिरूप और संख्याओं को लेकर आग्रही होता है । ऐसे लोग सम संख्या अथवा विषम संख्या, दोनों में से किसी एक को प्राथमिकता देते हैं | मुहम्मद संख्या 3 को लेकर बड़ा आग्रही था। बहुत से ऐसे कर्मकांड हैं, जो मुसलमानों को तीन बार करना आवश्यक होता है। इसके पीछे कोई तार्किक कारण नहीं है, सिवाय इसके कि यह मुहम्मद की सुन्नत पर आधारित है।
मुसलमानों को नमाज पढ़ने से पहले निम्नलिखित चीजें करनी अनिवार्य होती हैं इस इरादे का ऐलान करो कि यह कार्य इबादत के मकसद से है।
पानी से तीन बार कुल्ला करो।
नाक के दोनों छिद्रों में तीन बार पानी डालकर साफ करो।
चेहरे को तीन बार धोओ।
दाहिनी बांह को तीन बार कोहनी तक और फिर बाई बांह को कोहनी तक तीन बार धोओ।
भीगे हाथ से पूरे सिर अथवा इसके किसी भाग को एक बार साफ करो।
तर्जनी उंगली से कान के भीतर के भाग को साफ करो और अंगूठे से बाहरी भाग को। यह भीगी उंगलियों से किया जाना चाहिए।
भीगे हाथों से गले के चारों ओर साफ करो।
दाहिने पांव से शुरू कर दोनों पांव को घुटनों तक तीन बार धोओ।
तीन बार धोने का क्या मतलब है ? सिर, गले या पांव को भीगे हाथों से पोंछने का क्या तर्क है ? पहले दाहिने हाथ को ही क्यों धोएं ? ये सब बेसिरपैर के मजहबी कर्मकांड हैं, जिसका स्वच्छता या आध्यात्मिकता से कोई लेनादेना नहीं है।
कर्मकांड को लेकर मुहम्मद की सनक आगे और स्पष्ट होगी। इन कर्मकांडों को तयम्मुम कहा जाता है। जब पानी उपलब्ध न हो अथवा किसी कारण से पानी का उपयोग नहीं किया जा सकता हो तो ऐसी स्थिति में तयम्मुम की व्यवस्था की गई । यह निम्न तरीके से किया जाता है:
दोनों हाथों को मिट्टी, बालू या पत्थर से हल्का सा रगड़ो। फिर दोनों हथेलियों को आपस में मिलाओ और फिर चेहरे को उसी तरीके से पोंछो जैसा कि वजू में किया जाता है।
दोनों हथेलियों को फिर रगड़ो और बाएं हाथ से दाहिने हाथ को कुहनी तक और दाहिने हाथ से बाएं हाथ को कुहनी तक पोंछो। ये नियम बेतुके हैं। इसी तरह से नमाज पढ़ते समय किए जाने वाला कियाम (खड़ा होना), सुजूद (सिर को जमीन से सटाना), रुकू (झुकना) और जलसा (बैठना) भी बेतुके नियम हैं | इस्लाम ऐसे नियमों से भरा पड़ा है जो प्रतिरूप और संख्या को लेकर मुहम्मद की सनकों को बयान करते हैं और इससे पता चलता है कि वह ओसीडी से ग्रस्त था। नीचे वे कर्मकांड दिए गए हैं, जिन्हें मुहम्मद की सुन्नत माना जाता है और मुसलमानों को इसका पालन पूरी बारीकी से करना होता है । हालांकि इन सबका कोई मतलब नहीं है, लेकिन चूंकि यह मुहम्मद से जुड़ा है, इसलिए इनका पालन न करना मुहम्मद की तौहीन मानी जाती है और ऐसा करना सजा का हकदार बनाता है, जबकि इसका अक्षरश: पालन करने को सबाब मिलने वाला माना जाता है।
फर्श पर बैठना और खाना फ़र्श पर बैठ कर खाना
दाहिने हाथ से खाना खाना जो सामने है, उसे एक किनारे से खाना
खाने से पहले जूते उतारना
खाते समय दोनों घुटनों को जमीन पर रखना अथवा एक घुटना ऊपर अथवा दोनों घुटने ऊपर रखना
खाते समय चुप नहीं रहना चाहिए।
तीन उंगलियों से खाना
बहुत गर्म खाना नहीं खाना।
खाने पर झपट्टा नहीं मारना।
खाने के बाद उंगलियां जरूर चाटना ।
मुसलमान को दायें हाथ से पीना चाहिए। बाएं हाथ से शैतान पीता है।
बैठकर पीना प्रत्येक घूंट को तीन सांस में पीना और फिर गिलास को मुंह से हटाना।
अपना बिस्तर खुद ठीक करना।
बिस्तर पर सोने से पहले तीन बार झटक कर धूल झाड़ना। दाहिनी ओर सोना।
दाहिनी हथेली दाहिने गाल के नीचे रखकर सोना।
सोते समय घुटनों को हल्के से मोड़ना।
काबा की तरफ सिर करके सोना।
सोने से पहले सूरा इखलास, सूरा फलक और सूरा नास तीन बार पढ़ना तथा इसके बाद तीन बार शरीर को झटकना।
जागने पर हथेलियों से चेहरे और आंखों को मलना।
जब भी कोई कपड़ा पहनना होता था तो रसूल्लाह (अल्लाह के पैगम्बर) हमेशा पहले कपड़ा दाहिने अंग से डालते थे।
जब कपड़ा उतारना होता था तो रसूल्लाह हमेशा पहले बाएं अंग से उतारना शुरू करते थे।
पुरुषों को पाजामा टखने के ऊपर पहनना चाहिए। महिलाओं को ध्यान रखना चाहिए कि उनका नीचे का वस्त्र टखने को ढंके।
मर्दों को पगड़ी पहननी चाहिए। औरतों को हमेशा सिर पर स्कार्फ डाले रहना चाहिए।
जूता पहनते समय पहले दायें पैर का जूता पहनना चाहिए और फिर बाएं ।
पहले बाएं पैर का जूता उतारना चाहिए और फिर दाएं।
शौचालय में जाते वक्त सिर ढंका होना चाहिए।
शौचालय में घुसने से पहले दुआ पढ़नी चाहिए।
शौचालय में पहले बायां पैर रखना चाहिए।
पेशाब हमेशा बैठकर करना चाहिए। खड़े होकर पेशाब कभी नहीं करना चाहिए।
शौचालय से बाहर आते समय पहले दाहिना पैर बाहर निकालना चाहिए ।
शौचालय में मुंह मक्का की तरफ नहीं होना चाहिए और न ही पीठ काबा की तरफ होना चाहिए।
शौचालय में बात नहीं करें।
पेशाब करते समय शरीर पर उसके छींटे नहीं पड़ने चाहिए। (इस ओर लापरवाह होने पर कब्र में सजा दी जाती है।)
दातुन (दांत साफ करने के लिए लकड़ी का ब्रश) का प्रयोग रसूल्लाह की बड़ी सुन्नत है ।
वजू करते समय जो दातुन करेगा और इसके बाद नमाज़ पढ़ेगा, उसे 70 गुना अधिक सबाब मिलता है |
जुमा के दिन गुस्ल (स््रान) करना चाहिए।
दाढ़ी रखनी चाहिए, जिसकी लंबाई एक मुट्ठी हो।
जूते बाएं हाथ में लेकर चलना चाहिए।
मस्जिद में पहले दायां पांव रखना चाहिए।
मस्जिद से निकलते समय पहले बायां पैर निकालना चाहिए।
आयशा ने एक जगह कहा है कि मुहम्मद मध्य रात्रि में उठ जाता था और कब्रिस्तान में इबादत करने चला जाता थाः
जब उस दिन अल्लाह के रसूल के साथ रात में सोने की मेरी बारी थी तो उन्होंने करवट बदली और अपना लबादा पहना और जूते उतारकर अपने पैरों के पास रख लिये | इसके बाद अपने शॉल के कोने को अपने बिस्तर पर फैलाया और तब तक पड़े रहे, जब तक कि उन्हें नहीं लगा कि मैं सो गई हूं। फिर धीरे से उन्होंने अपना लबादा उठाया, जूते पहने और दरवाजा खोलकर बाहर निकलकर धीरे से बंद कर दिया। मैंने अपना सिर ढंककर नकाब पहना और नाड़े को कसा, फिर उनके पीछे-पीछे गई । वह बकी (कब्रिस्तान) पहुंचे और वहां ठहरे, फिर काफी देर तक वहां खड़े रहे । इसके बाद उन्होंने अपने हाथ तीन बार उठाए और वापस लौटने लगे तो आयशा भी लौटने लगी। उन्होंने वापसी में अपने कदम तेज कर दिए और आयशा ने भी | वह दौड़ने लगे और मैं भी | वह घर पहुंचे और मैं भी | हालांकि मैं उनसे पहले घर पहुंची और बिस्तर पर सो गई । वह (पाक रसूल) घर के अंदर पहुंचे और कहा, “अरे आयशा, क्या हुआ, तुम हांफ क्यों रही हो ?' मैंने कहा, 'कुछ तो नहीं ।' वो बोले, 'तुम बताओ मुझे, नहीं तो मुझे अंतर्ज्ञान से पता चल ही जाएगा ।' मैंने कहा, ' अल्लाह के रसूल, मेरे पिता और मां आपके पास फिरौती के रूप में हैं। फिर उनको पूरी बात बता दी ।' उन्होंने कहा, ' क्या अंधेरे मुझे जो परछाई दिख रही थी, वह तुम्हारी थी ?' मैंने कहा, 'हां।' उन्होंने मेरी की छाती पर जोर का वार किया, जिससे मैं दर्द से छटपटा गई । उन्होंने कहा, ' तुम्हें क्या लगता है कि अल्लाह और उसके रसूल तुम्हारे साथ जुल्म करेंगे ?' मैंने कहा, "अल्लाह से कुछ नहीं छिपा है, वह सब जानता है ।' उन्होंने कहा, “जब तुमने मुझे देखा तो मेरे पास जिब्राईल आया था। उसी ने मुझे बुलाया था और यह बात वह तुमको जाहिर नहीं होने देना चाहता था। उसने पुकारा था, इसलिए मैं गया था और यह बात मैंने भी तुमसे छिपाई (क्योंकि वह तुम्हारे सामने प्रकट नहीं हुआ), क्योंकि तुम ने ठीक से कपड़े नहीं पहन रखे थे | मुझे लगा कि तुम सो गई हो और यह सोचकर मैं तुम्हें जगाना नहीं चाहता था कि तुम डर जाओगी ।' उसने (जिब्राईल ने) कहा, 'अल्लाह का हुक्म है कि कब्रिस्तान में जाओ और उन लोगों के गुनाहों के लिए माफी मांगो, जो वहां दफन हैं ।' मैंने कहा, “अल्लाह के रसूल, मैं उनके लिए दुआ कैसे मांगू (उनके लिए गुनाहों की माफी किस तरह से मांग सकती हूं) ? उन्होंने कहा, 'बोलो, इस कब्रिस्तान में दफन ईमान वाले मुसलमानों को अल्लाह शांति नसीब करे। और जो हमसे पहले चले गए और हमारे बाद जाएंगे, अल्लाह उन पर रहम करे और अल्लाह के फजल से हम सब उसमें शामिल हों /“
वह अल्लाह जरूर कोई पागल होगा जो अपने रसूल को आधी रात को कब्रिस्तान में जाकर मर चुके लोगों के लिए माफी मांगने का हुक्म देता है। क्या वह ऐसे विचित्र समय पर अपने रसूल को परेशान किए बिना उन्हें माफ नहीं कर सकता था? विडम्बना यह है कि मुहम्मद के साथियों ने उसके उन अजीबोगरीब व्यवहारों की गलत व्याख्या करते हुए इसे उसकी नेकनीयती का प्रमाण बताया, जबकि उसके ये व्यवहार साफ तौर पर उसके मनोविकृति (मनोरोग-पागलपन) को इंगित करते हैं।
एक हदीस में मुहम्मद अपने अनुयायियों को चेतावनी देते हुए कहता है कि भीगे हाथ से अपनी एड़ी पोंछकर 'दोजख की आग से खुद को बचाओ 7४ ऐसा नहीं था कि मुहम्मद ऐसा कहकर लोगों को स्वच्छता का संदेश दे रहा था, बल्कि यह उसकी रस्म निभाने (अतार्किक व बेसिरपैर के कर्मकांड) की सनक थी। उसने सोचा कि भीगे हाथ पैरों पर फिराने और यहां तक कि मोजे के ऊपर से फिराने भर से दोजख की आग से बचा जा सकता है । बुखारी में एक हदीस है, जिसमें कहा गया है कि मुहम्मद चमड़े के मोजे पहने होता था तो उसके ऊपर से ही भीगे हाथ से पोंछता था:
अल-मुगैरा बिन सुबा ने बताया: 'एक यात्रा के दौरान मैं अल्लाह के रसूल के साथ था तो वह शौच के लिए गए (और जब शौच कर लिया) तो मैंने पानी गिराया तो उन्होंने मजजन किया अर्थात अपना चेहरा धोया, बाजू धोए और फिर भीगा हाथ अपने सिर पर फिराया, फिर इसके बाद उसी भीगे हाथ से पैर में पहने चमड़े के दोनों मोज़ों को पोंछा ।?*
एक और हदीस में बुखारी हुमरान (उस्मान का गुलाम) का हवाला देते हुए कहता है:
मैंने देखा कि उस्मान बिन अफ्फान ने पानी का एक पीपा मांगा। जब पीपे उनके पास लाया गया तो उन्होंने अपने हाथों में पानी उड़ेला और तीन बार धोया। फिर दाहिना हाथ पीपा में डाला और मुंह में पानी लेकर कुल्ला किया, नाक के भीतर पानी डालकर साफ किया और फिर पानी उलीचकर मुंह धोया, तीन बार कुहनी तक बाहें धोयीं | इसके बाद उसने कहा, ' अल्लाह के रसूल ने कहा है कि यदि कोई मेरी तरह से वजू (मज्जन) करता है और दो वक्त की नमाज अदा करता है, तथा उस दौरान उस वक्त नमाज के अलावा और कुछ नहीं सोचता है तो उसके पुराने गुनाह माफ हो जाएंगे।' मैंने रसूल को कहते सुना था, 'यदि कोई मुकम्मल तरीके से वजू करता है और उसके बाद अनिवार्य सामूहिक रूप से नमाज अदा करता है तो अल्लाह उस नमाज और अगले नमाज के बीच किए गए गुनाहों का माफ कर देता है। और जब तक वह इस तरह नमाज अदा करता रहेगा, उसके गुनाह माफ होते रहेंगे।?*
यह कितना अतार्किक है। केवल ऑबसेस्सिव-कम्पलसिव डिस्आऑर्डर से ग्रस्त इंसान ही ऐसा सोच सकता है कि किसी के गुनाह महज कुछ निश्चित रस्म (रिचुअल्स) निभाने से माफ हो जाएंगे। मनोविकार व्यक्ति द्वारा बारबार दोहराए जाने वाले उन व्यवहारों अथवा मानसिक गतिविधियों से पहचाना जाता है, जो मनुष्य ऐसे नियमों के अनुसार करने को प्रेरित होता है, जिसका पालन कठोरता से किए जाने की बाध्यता हो । मनोविकार की पहचान उन व्यवहारों व मानसिक गतिविधियों द्वारा भी होती है, जिनका उद्देश्य जहन्नुम या इस प्रकार की काल्पनिक विपदा को टालने या कम करने अथवा किसी अनहोनी को रोकना होता है। इस्लाम निरर्थक नियम-कायदे और धार्मिक कर्मकांड से भरा हुआ है। वजू, गुस्ल (नहाना), अनिवार्य नमाज के नियम और हज व रोजा आदि अनिवार्य होना आदि इंगित करता है कि मुहम्मद के ऊपर धार्मिक रस्मों (कर्मकांडों) को लेकर जुनून सवार था। उसने यहां तक कहा कि शौच के बाद खुद को स्वच्छ करने के लिए कितने कंकड़ का प्रयोग किया जाना चाहिए। (उसके मुताबिक शौच के बाद स्वच्छ करने के लिए कंकड़ों की संख्या विषम होनी चाहिए। चार कंकड़ प्रयोग करने के बजाय तीन कंकड़ अधिक स्वच्छ करते हैं।)
एक हदीस में मुहम्मद कहता है, 'जब तुममें से कोई पेशाब करे तो उसे तीन बार अपने उस अंग से पेशाब निकालकर खाली करना चाहिए।' ईरान के अयातुल्ला ने फरमान दिया है कि लिंग को तीन बार झटक देने के बाद यह साफ हो जाता है और इसके बाद यदि पेशाब की बूंदें कपड़े पर गिर भी जाएं तो उस व्यक्ति की नमाज खारिज नहीं होती है।