मैं ही क्यूं हर रिश्ते में दिल लगाती हूं
मैं ही क्यूं हर रिश्ते को दिल से निभाती हूं,
मैं ही क्यूं सबके लिए वक्त निकाल लाती हूं?
जब उनके लिए मैं एक याद भी नहीं हू,
तो क्यूं मैं उनके लिए दुआं बन जाती हूं?
वो साथ पढ़ती है पर साथ छोटी सी बात भी नहीं,
मैं हर पल उसे महसूस करु, वो तो सिर्फ जरूरत की तरह थी।
मुझे लगता था दोस्ती में दर्द नहीं होता,
पर अब लगता हैं.... हर रिश्ता भी रुख सा लगता हैं।