🌌 "अंतराल के अनन्त स्वर" 🌌
मनःसागर की अथाह गहराइयों में, जहाँ विचारों के मोती अदृश्य धाराओं में तैरते हैं, वहाँ आकांक्षाओं की सुवर्णिम तरंगें निःशब्द लहराकर आत्मा के मर्मस्थल को स्पर्श करती हैं।
संघर्षों के दुर्गम शिखरों पर, थकान के हिमकण भले ही हृदय को शीतल कर दें, परंतु साहस का सूर्य निरंतर प्रखर होकर स्वप्नों के मार्ग को आलोकित करता रहता है।
विवेक और वासना के अनन्त द्वंद्व में, चेतना का रथ समय के अनवरत प्रवाह पर दौड़ता है, और प्रत्येक ठोकर को वह अनुभवों के पवित्र रत्नों में परिवर्तित करता चला जाता है।
अश्रु-सिक्त स्मृतियों की संध्या में, जब निराशा के बादल अपने काले पराग बिखेरते हैं, तब भी अभिलाषा का चंद्र उदित होकर हृदयाकाश को चाँदी की आभा से भर देता है।
जीवन के गुप्त प्रांगण में, सत्य और स्वप्न की संगति से रचित जो अमर राग बजता है, वह हमें स्मरण दिलाता है कि—
अंधकार चाहे कितना भी विराट और भयावह क्यों न हो, प्रकाश की उत्पत्ति उसी की गर्भगृह में होती है।