प्रकृति की prerada कविता
शीतल छाँव तले विराजित है प्रकृति की आराधना,
निरंतर प्रवाहित नदियाँ, जीवन की अमर कथा कहती।
विपत्तियों की वेदना में छुपा है विजय का संदेश,
पतझड़ के बाद पुष्पित होती नवीनतम ऋतु का प्रवेश।
अविरल सागर की लहरें, अनन्त साहस की प्रतिमूर्ति,
संकटों के मध्य भी न कभी शिथिल, न कभी विमूढ़।
धरती का वह अधीर आलिंगन, सहनशीलता का परिचायक,
कष्ट सहकर भी विपरीत वायु में नवजीवन का उपदेशक।
“संघर्षरूपिणी वह नदियाँ, न हृदय में लय खोतीं,
विपुल पथ पथिक बनी, सदैव अग्रेसर होतीं।”
व्योम के गर्भ से उदित सुमुख सूर्य,
तमसा विमोचन की ज्योतिर्मय प्रतिमूर्ति।
जैसे अधीरतम अन्धकार भी अन्ततः पराजित,
तथा नए स्फुरण की ओर ले जाए निर्मल पथिक।
धैर्य और साहस की वह अनुपम अभिव्यक्ति,
संघर्ष में निहित सजीव आशा की अनुभूति।
“अस्थिरता से परे, अडिग दृढता का उद्घोष,
सफलता के मंदिर की प्रथम शिला वहीरोष।”
उदयमान काल की नीरव गाथा कहती,
न ह्रास स्वीकार्य, न पतन निरर्थक।
उत्साह में उर बंधित, आशा का द्योतक,
स्वयं को समर्पित, लक्ष्य की ओर अग्रसर।
“यथा इच्छासे पथः, तथा साधनं स्यात्,
न त्यजेत दृढमनः, यः विजेता भवित।”
सहस्रांधित प्रयासों के संग विहरति जीवन,
प्रकृति की कठोर तपस्या से सृष्टि संजीवनी।
जीवन की अमरता, सद्गुणों की सौगात,
संकटों के बाद प्राप्त हो सच्ची विजय की बात।
कैसी लगी।