सच्चा प्रेम और पति–पत्नी का रिश्ता
सच्चा प्रेम कभी रूप, रंग या तुलना नहीं करता। यह तो वही डोर है जो हर परिस्थिति में मजबूती से थामे रहती है। चाहे बीमारी हो, चाहे आर्थिक स्थिति कमजोर हो, या फिर जीवन में छोटे–बड़े उतार–चढ़ाव आएं—प्रेम हर हाल को अपनाता है।
पति–पत्नी का रिश्ता साइकिल के दो पहियों की तरह होता है। यदि एक पहिया डगमगाए, तो दूसरा उसे संभाले बिना साइकिल आगे नहीं बढ़ सकती। इस रिश्ते में संतुलन, विश्वास और समझदारी सबसे बड़ी पूंजी है।
आजकल कई बार देखने को मिलता है कि कुछ पत्नियाँ अपने पति की तुलना दूसरों से करने लगती हैं। "देखो, वह अपनी पत्नी को गिफ्ट देता है, घूमाने ले जाता है, चॉकलेट्स लाता है, लेकिन मेरा पति तो बिल्कुल कंजूस है।" ऐसी शिकायतें धीरे–धीरे रिश्तों में खटास ला देती हैं। हर पत्नी को यह समझना चाहिए कि उसका पति सबसे पहले अपने परिवार और उसकी आर्थिक स्थिति को देखकर चलता है। वह जो भी कमाता है, उसी से घर का चूल्हा जलता है, बच्चों की पढ़ाई और भविष्य सुरक्षित होता है। ऐसे में पति की आमदनी को लेकर ताने देना या दूसरों से तुलना करना उचित नहीं।
हर पत्नी को यह समझना चाहिए कि उसका पति मेहनत करके उसी के लिए कमाता है। बाहर की दुनिया में संघर्ष कितना कठिन है, यह वही जानता है जो रोज़ मेहनत करके दो वक्त की रोटी घर लाता है। यदि पत्नी उस मेहनत की कद्र नहीं करेगी, तो पति का मन भी टूट जाएगा।
दूसरी ओर, कई पतियों की भी शिकायत रहती है कि पत्नी घरेलू कामों में उतनी निपुण नहीं, समय पर नहीं उठती, खाना कभी नमक–मिर्च में ठीक नहीं बनता। लेकिन पति को यह समझना चाहिए कि उनकी पत्नी भी इंसान है, मशीन नहीं। यदि थोड़ी कमी रह भी गई तो उस पर नाराज़ होने की बजाय प्यार से कहें। सच्ची पत्नी वही होती है जो अपने पति और परिवार की खुशियों में ही अपनी खुशी ढूँढ़ लेती है।
एक पत्नी को सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है इज़्ज़त और सम्मान की। वह सोना–चाँदी या महंगी जायदाद नहीं माँगती, बल्कि चाहती है कि उसका पति उसे दो पल का साथ दे, उसका मन समझे और छोटी–छोटी खुशियों में शामिल हो। ठीक वैसे ही पति भी चाहता है कि उसकी पत्नी उसकी मेहनत को समझे, उसका साथ दे और दूसरों से तुलना न करे।
अंततः यही कहा जा सकता है कि पति–पत्नी का रिश्ता तभी सफल होता है जब दोनों एक–दूसरे की परिस्थितियों और भावनाओं को समझें। एक–दूसरे की कमी निकालने की बजाय यदि वे एक–दूसरे की अच्छाइयों को अपनाएँ, तो जीवन की राहें आसान हो जाती हैं। सच्चा प्रेम वहीं है जहाँ न तुलना होती है, न स्वार्थ—बस अपनापन और सम्मान होता है।
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