तुमसे कोई संपर्क नहीं रहा और इस दूरी ने मुझे एहसास दिलाया कि मुझे तुम्हारी ज़रूरत कभी उतनी थी ही नहीं जितना मैं समझती थी।
शुरू में अजीब लगा,हर दिन कुछ कमी-सी महसूस होती थी। न तुम्हारे संदेश आते, न तुम्हारा नाम मेरे फ़ोन की स्क्रीन पर दिखता। मैं इंतज़ार करती रही किसी कॉल का, किसी छोटे से संकेत का कि शायद अब भी तुम्हें मेरी परवाह है। लेकिन कुछ नहीं आया और धीरे-धीरे उस इंतज़ार ने मुझे मज़बूत बना दिया।
वो सन्नाटा, जो पहले भारी लगता था,अब मेरा सुकून बन गया है। हमारे बीच की दूरी,जो पहले खोने जैसी लगती थी,अब आज़ादी जैसी लगती है। मैंने सोचा था, तुम्हारे बिना मेरी दुनिया रुक जाएगी पर वो चल रही है।
मैंने सोचा था, तुम्हारे प्यार के बिना मैं अधूरी रहूंगी पर मैं पूरी हूं।
अब समझ आया कि प्यार सिर्फ़ किसी और से नहीं,ख़ुद से भी किया जा सकता है।