मैं कभी नहीं भूलूँगी
उन्हें, जिन्होंने मुझे उस वक्त तकलीफ़ दी,जब मैं पहले ही ज़िंदगी की लड़ाई लड़ रही थी। जो मुझे टूटते हुए देख रहे थे,पर फिर भी मेरे घावों पर नमक छिड़कने से नहीं चूके। जो मेरे बोझ में अपना बोझ जोड़ गए,जब मैं पहले ही अपने दर्द के नीचे दब रही थी।
मुझे याद है वो एहसास टूटने के कगार पर भी खुद को संभालने की कोशिश करना और फिर भी ऐसे बर्ताव का सामना करना,जैसे मेरा दर्द किसी मायने का न हो।
मैं कभी नहीं भूलूँगी कि इंसान कितने ठंडे हो सकते हैं,
कितनी जल्दी वे जज कर देते हैं वो बातें जिन्हें वे समझते भी नहीं।
मैं पहले से ही अपनी लड़ाइयाँ लड़ रही थी,पर उन्होंने मुझे ऐसा महसूस कराया जैसे मुझे थकने का भी हक़ नहीं,जैसे मुझे मज़बूत बने रहना ही पड़ेगा,भले ही मैं भीतर से पूरी तरह बिखर चुकी थी।
मेरे दिल में नफ़रत नहीं है,लेकिन यादें हैं… बहुत गहरी।
क्योंकि कुछ सबक़ इंसानियत से मिलते हैं,और कुछ उनसे जो हमें सबसे ज़्यादा दर्द तब देते हैं,जब हमें सबसे ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है।