Hindi Quote in Poem by Rinki Singh

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वह भी जन्मी थी इसी ज़मीन पर औरों की तरह..
दौड़ सकती थी सपनों के घोड़ों संग,
लहरा सकती थी अपने इरादों की तलवार…
पर उसकी हथेलियों पर बचपन से ही
सहनशीलता की लकीरें उकेरी गईं,
और कंधों पर रख दिया गया
घर की मर्यादा का अनदेखा, अनचाहा बोझ

फिर भी…
हर दिन वह लड़ती है दो मोर्चों की जंग..
एक बाहर की दुनिया से,
और एक भीतर उठते तूफ़ान से

उसके भीतर
एक रानी है…
जो ताज न पहनकर भी
अपने मन के राज्य को संभाल लेती है;
जिसके सिपाही उसकी उम्मीदें हैं,
और जिसकी फौज उसकी इच्छाशक्ति

वह जानती है..
उसकी थकान को “फ़र्ज़” कहा जाएगा,
उसके आँसू “कमज़ोरी” समझे जाएँगे,
और उसके सपने
चौखट पर ही दम तोड़ देंगे
अगर वह खुद उन्हें थामे न रखे

वह हर रात
अपने घायल मन पर पट्टियाँ बाँधती है,
अपनी इच्छाओं के जख़्मी घोड़े
फिर से पाले में खड़े कर देती है,
और सुबह होते ही
निकल पड़ती है
दुनिया की युद्धभूमि पर।


नारी…
वह सिर्फ एक देह नहीं,
त्याग, संघर्ष, अपमान और क्षमा का एक पूरा वृत्तांत है
वह चाहे गृहिणी हो, मज़दूर हो, अधिकारी हो या कलाकार…
हर रूप में लड़ रही है
एक अनवरत चलने वाली लड़ाई

और यही उसकी विजय है..
कि टूटकर भी जी उठती है,
हारकर भी हार मानती नहीं
हर स्त्री के भीतर
बसती है “मनु” साहस की..
जिसे समाज जितना बाँधने की कोशिश करे,
वह अपने मन की झाँसी
कभी हारने नहीं देती

स्त्री…
अपने घर की “लक्ष्मी” हो या न हो,
अपने जीवन की “लक्ष्मीबाई” अवश्य है

— रिंकी सिंह ✍️

Hindi Poem by Rinki Singh : 112006650
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