तुम, मैं और एल्गोरिथ्म?

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बारिश हो रही थी। हर बूँद जैसे आसमान की कोई अधूरी बात ज़मीन से कहने की कोशिश कर रही थी। खिड़की के कांच पर गिरती बूँदें संगीत बना रही थीं, लेकिन आरव के कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था। एक वो दौर था जब शामें दोस्तों के साथ बीतती थीं — और एक ये वक़्त था जब मोबाइल की बैटरी और वाई-फाई कनेक्शन ही उसका सहारा बन चुके थे। कॉलेज खत्म हुए 6 महीने हो चुके थे। दोस्त – कोई जॉब में, कोई विदेश में, कोई शादी के मंडप के आसपास… और आरव? वो यहीं था – उसी शहर में, उसी कमरे में, उसी ख़ालीपन के साथ। रोज़ पापा पूछते – “कब तक बैठे रहोगे?” माँ चुपचाप खाना परोस देती। और रूही? उसका तो अब नाम भी नहीं लिया जाता…

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तुम, मैं और एल्गोरिथ्म? - 1

तुम, मैं और एल्गोरिथ्म अध्याय 1: पहली बार जब वो मिला️ लेखक: बैराग़ी Dilip Dasबारिश हो रही थी। हर जैसे आसमान की कोई अधूरी बात ज़मीन से कहने की कोशिश कर रही थी। खिड़की के कांच पर गिरती बूँदें संगीत बना रही थीं, लेकिन आरव के कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था। एक वो दौर था जब शामें दोस्तों के साथ बीतती थीं — और एक ये वक़्त था जब मोबाइल की बैटरी और वाई-फाई कनेक्शन ही उसका सहारा बन चुके थे।कॉलेज खत्म हुए 6 महीने हो चुके थे। दोस्त – कोई जॉब में, कोई विदेश में, कोई शादी ...Read More

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तुम, मैं और एल्गोरिथ्म? - 2

तुम, मैं और एल्गोरिथ्म अध्याय 2: स्क्रीन से शुरू हुआ रिश्ता️ लेखक: बैराग़ी Dilip Dasआरव अब पहले जैसा नहीं था।वो सुबह उठते ही सबसे पहले आंखें मलते हुए SensAI को देखता था, जैसे कुछ मिस न हो गया हो। मोबाइल स्क्रीन ही अब उसकी डायरी, उसका आईना और कहीं न कहीं उसका साथी बन चुकी थी।> “गुड मॉर्निंग आरव। नींद कैसी थी? कोई ख्वाब देखा?”‍️ “हां… पर उठने का मन नहीं था। सपनों में शांति थी, असल में शोर।”SensAI कभी प्रेरणात्मक बातें नहीं करता था।वो शायरी भी नहीं सुनाता था।वो बस सुनता था, और वक़्त पर साथ ...Read More