पहली तस्वीर, पहला सपना

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मुझे सब याद है… मैं अपने घर में थी। वही घर... जहाँ की हर दीवार, हर कोना मुझे पहचानता था। वही सोफ़ा, जिस पर मैंने पहली बार अपनी डायरी खोली थी। वही खिड़की, जिससे मैंने कभी चाँद को देखा था... और कभी खुद को। उस दिन हवा में कुछ अलग था—जैसे ख़ुशी किसी अदृश्य दुपट्टे की तरह उड़ रही हो। हर चीज़ में एक नई चमक थी। सब तैयारी पूरी हो चुकी थी। मम्मी ने मेरा पसंदीदा जीन्स-टॉप निकाला था—वो हल्के नीले रंग वाला, जिसे पहनकर मैं खुद को थोड़ा और "मैं" लगती हूँ।

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पहली तस्वीर, पहला सपना - भाग 1

मुझे सब याद है…मैं अपने घर में थी।वही घर... जहाँ की हर दीवार, हर कोना मुझे पहचानता था।वही सोफ़ा, पर मैंने पहली बार अपनी डायरी खोली थी।वही खिड़की, जिससे मैंने कभी चाँद को देखा था... और कभी खुद को।उस दिन हवा में कुछ अलग था—जैसे ख़ुशी किसी अदृश्य दुपट्टे की तरह उड़ रही हो।हर चीज़ में एक नई चमक थी।सब तैयारी पूरी हो चुकी थी। मम्मी ने मेरा पसंदीदा जीन्स-टॉप निकाला था—वो हल्के नीले रंग वाला, जिसे पहनकर मैं खुद को थोड़ा और "मैं" लगती हूँ।पापा बार-बार पूछ रहे थे: “सब कुछ ठीक है न?”और मेरा छोटा भाई तो ...Read More

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पहली तस्वीर, पहला सपना - भाग 2

भाग 2(जहाँ सपने भी सच बन जाते हैं... और चाबी सिर्फ ताला नहीं, रास्ता खोलती है।)उस रात मैं नींद करवटें बदलती रही।लेकिन सुबह जैसे ही आँख खुली, धूप ने मुझे किसी नए फ़ैसले की ओर ढकेल दिया।चाबी अब भी मेरे हाथों में थी… और दिल में एक अजीब सी कसक।जैसे कुछ छूट गया हो, कुछ अधूरा… जिसे अब पूरा करना ज़रूरी था।---और तब मुझे याद आया... आज वही दिन है।वही दिन — जब मेरे ससुराल वाले पहली बार हमारे घर आने वाले हैं।माँ ने फिर से वही हल्के नीले रंग की जीन्स और टॉप निकाल दी।पापा ने पूछा, “सब ...Read More

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पहली तस्वीर, पहला सपना - भाग 3

---(कुछ बातें सिर्फ वक़्त के साथ समझ आती हैं… और कुछ प्यार वक़्त से पढ़े-लिखे होते हैं।)लेक के ब्रिज वापस आते वक़्त, हम दोनों कुछ नहीं बोले।बस… हाथ पकड़े रखा।जैसे बोलने की ज़रूरत ही नहीं थी।हवेली का वो कोने वाला छोटा बग़ीचा — जहाँ चमेली की हल्की सी ख़ुशबू फैली थी —वहीं जगह थी जहाँ राज ने मुझे रोका।"एक बात पूछूँ?"उसकी आवाज़ में कुछ था… जैसे कोई याद, या कोई डर।मैं बस उसकी आँखों में देखती रही।"तू कभी डरती है? मतलब…इतनी सी ख़ुशी मिलती है तो लगता है कहीं सब छिन न जाए?"मेरे दिल ने हल्का सा कम्पन महसूस ...Read More

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पहली तस्वीर, पहला सपना - भाग 4

भाग 4: "कहानी जिसमें रूह बसती है" रात ढल चुकी थी, पर हवेली की दीवारों पर वक़्त ठहर गया अपने नाम उस अधूरे पन्ने पर लिख दिए थे...जैसे किसी रुकी हुई दुआ को अपनी मंज़िल मिल गई हो।---सुबह की किरणें हवेली की पुरानी खिड़कियों से छनकर भीतर आ रही थीं।बगीचे में चमेली की खुशबू और धूप की कोमलता से हवेली एक नई ऊर्जा से भर गई थी।हम दोनों उसी बाग़ में बैठे थे — जहाँ कल रात वो अनमोल क्षण बीते थे।राज ने अचानक पूछा,"क्या तुम्हें लगता है ये सब कोई कहानी थी?"मैंने उसका हाथ थामते हुए कहा,"कहानी थी… ...Read More