जिंदगी के रंग

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आज इस शोर भरे मेट्रो में भी मुझे अकेला पन लग रहा था , मेरे चारों तरफ कितने लोग थे जो इस समय अपने काम से वापस घर जा रहे थे । कुछ फोन पर बातें कर रहे थे तो कुछ फोन देख रहे थे। कुछ तो जोड़ो में बैठे थे , और अपनी ही बातों में गुम थे । और मैं इन सब को देख रहा था । मैं! मैं आज ही इतना अकेला महसूस कर रहा था । मैं जो रोज इन्ही लोगो में एक था आज मैं एक दम से अकेला हो गया था । मैं जो रोज इन्ही रास्तो से जाया करता था । आज वो मेरे लिए अजनबी से हो गये थे। और यही मेट्रो जो रोज मुझे मेरे ऑफिस से घर तक का रास्ता तै कराती थी । आज ये भी बेगानी सी लगने लगी थी ।

Full Novel

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जिंदगी के रंग - 1

आज इस शोर भरे मेट्रो में भी मुझे अकेला पन लग रहा था , मेरे चारों तरफ कितने लोग जो इस समय अपने काम से वापस घर जा रहे थे । कुछ फोन पर बातें कर रहे थे तो कुछ फोन देख रहे थे। कुछ तो जोड़ो में बैठे थे , और अपनी ही बातों में गुम थे । और मैं इन सब को देख रहा था ।मैं! मैं आज ही इतना अकेला महसूस कर रहा था । मैं जो रोज इन्ही लोगो में एक था आज मैं एक दम से अकेला हो गया था ।मैं जो रोज इन्ही ...Read More