तन्हा सफ़र: जज़्बातों की छांव में भीगा इश्क़

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बारिश की पहली बूँद और एक अधूरा नाम रचयिता: बाबुल हक़ अंसारी उस रोज़ बारिश कुछ अलग थी… ना ज़ोर से बरसी, ना आहिस्ता गिरी — बस जैसे किसी की यादों को छूने आई हो। आर्यन अपने कमरे की खिड़की से बाहर टकटकी लगाए बैठा था। सामने मैदान में कुछ बच्चे भीग रहे थे, कुछ पंछी फड़फड़ा कर छत की ओट में चले गए थे, और बारिश की हर बूँद मानो किसी भूले हुए नाम की पुकार थी। उसका मन अचानक फिर से वहीं अटक गया — एक आवाज़… एक चेहरा… और वो अधूरा नाम — **"रिया..."**

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तन्हा सफ़र: जज़्बातों की छांव में भीगा इश्क़ - 1

भाग-1: बारिश की पहली बूँद और एक अधूरा नाम रचयिता: बाबुल हक़ अंसारीउस रोज़ बारिश कुछ थी…ना ज़ोर से बरसी, ना आहिस्ता गिरी — बस जैसे किसी की यादों को छूने आई हो।आर्यन अपने कमरे की खिड़की से बाहर टकटकी लगाए बैठा था।सामने मैदान में कुछ बच्चे भीग रहे थे, कुछ पंछी फड़फड़ा कर छत की ओट में चले गए थे,और बारिश की हर बूँद मानो किसी भूले हुए नाम की पुकार थी।उसका मन अचानक फिर से वहीं अटक गया —एक आवाज़… एक चेहरा… और वो अधूरा नाम — **"रिया..."**वो नाम अब सिर्फ़ एक स्मृति था, ...Read More

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तन्हा सफ़र: जज़्बातों की छांव में भीगा इश्क़ - 2

भाग-2: अधूरी चिट्ठी और अनसुना नाम. रचना: बाबुल हक़ अंसारीउसने एक लंबा साँस लिया…फिर बुदबुदाया —**"कभी-कभी में सबसे ज़्यादा आवाज़ें होती हैं… बस सुनने वाला कोई नहीं होता।"** ••● अब आगे की कहानी ●••उसे अब आँसू बहाना छोड़ना पड़ गया था —क्योंकि अब वो समझ चुका था,कि **इंतज़ार भी एक तरह की आदत होती है…**जिसे छोड़ा नहीं जाता।पर उस सुबह, आदत से हटकर कुछ हुआ।जब उसने डायरी को धीरे से बंद किया और उसे वापस उसी संदूक में रखने लगा,तो एक कोने से कुछ फंसा हुआ सा काग़ज़ निकला।पीला… हल्का सा फटा हुआ…शायद किसी चिट्ठी का ...Read More

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तन्हा सफ़र: जज़्बातों की छांव में भीगा इश्क़ - 3

रचना: बाबुल हक़ अंसारीभाग 3: ख़ामोश लम्हों की आवाज़ेंवो खिड़की से हट गया...पर बाहर की बारिश अब उसके अंदर चुकी थी।कमरे की दीवारें चुप थीं, पर उनमें रिया की हँसी गूंज रही थी।आर्यन ने अलमारी से वो पुरानी डायरी निकाली —जिसके हर पन्ने में रिया की साँसें बसी थीं।पन्ने पलटते हुए एक पेज के बीचकोई छोटा-सा लिफ़ाफ़ा फँसा हुआ मिला।कांपते हाथों से उसने उसे निकाला —लिफ़ाफ़े पर लिखा था:"जिसे तुम प्यार कहते हो,वो कभी-कभी हमारी रूह को किसी और से बाँध देता है..."अंदर एक और अधूरी चिट्ठी थी —स्याही कुछ धुंधली थी, पर हर ...Read More

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तन्हा सफ़र: जज़्बातों की छांव में भीगा इश्क़ - 4

“जो ढूंढे वो रस्ता नहीं… चेहरा होता है।”बाबुल हक़ अंसारीआर्यन अगले दिन उसी कैफ़े में पहुँचा — जहाँ की में रिया बैठी थी।वो कोना अब भी वैसा ही था…बस मेज़ पर अब रिया की जगह खाली कुर्सी थी।उसने वहाँ के पुराने वेटर से पूछा —“क्या आप इस लड़की को पहचानते हैं?”वेटर ने तस्वीर देखी, कुछ पल ठहरा और बोला:“रिया… हाँ, अक्सर आती थी। पर अकेली नहीं।”“उसके साथ कोई लड़का भी आता था, शांत… पर बहुत ख्याल रखने वाला।वो कभी ज्यादा नहीं बोलता था, पर उसकी आंखें बहुत कहती थीं।”आर्यन की रगों में कुछ दौड़ गया —“अयान?”“नाम नहीं पता, साहब। ...Read More