रचना: बाबुल हक़ अंसारी
भाग. 6 “जिसे रूह ने छोड़ा नहीं…”
– रिया की दुनिया, बिना अयान के]
रिया अब भी उसी शहर में थी,
पर वो लड़की नहीं रही थी जो अयान के साथ भाग जाने को तैयार थी।
अब वो एक स्कूल में संगीत पढ़ाती थी —
धुनें उसकी सिसकियों को ढक लेती थीं।
हर सुबह वो वही स्कार्फ पहनती, जो अयान ने आख़िरी बार उसे दिया था।
एक शाम, उसकी पुरानी दोस्त श्रुति मिलने आई।
बातों-बातों में उसने पूछा —
“अब भी किसी के इंतज़ार में रहती हो क्या?”
रिया मुस्कुराई —
वो मुस्कान जिसमें पूरी उम्र थक गई थी।
“नहीं… अब इंतज़ार नहीं करती।
बस कभी-कभी आँखें खुद-ब-खुद उस मोड़ पर टिक जाती हैं…
जहाँ से कोई लौटा ही नहीं।”
श्रुति ने उसका हाथ थामा —
“काश वो जानता कि तुम अब भी उसी जगह अटकी हो…”
रिया ने खिड़की से बाहर देखा।
जहाँ दूर एक बच्चा पतंग उड़ा रहा था —
उसी रंग की, जो अयान को पसंद थी।
“मैं उसे कभी खो नहीं पाई…
वो अब भी मेरी सांसों के बीच कहीं बसता है।
बस... अब उसका नाम नहीं लेती।”
रात…
रिया की आदत थी —
हर महीने की पहली रात को उस रेलवे स्टेशन पर जाना,
जहाँ से अयान बिछड़ा था।
वो वही बेंच थी —
जहाँ वो बैठे थे, साथ भागने के इंतज़ार में।
रिया उसी जगह बैठी थी,
आसमान देखती, जैसे कोई तारों से अयान का पता पूछ रही हो।
और तभी…
कदमों की हल्की आवाज़…
एक परछाई उसकी बगल में आकर ठहर गई।
“रिया…” — किसी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा।
रिया ने सिर घुमाया… उसकी धड़कनें रुक गईं।
एक चेहरा, जाना-पहचाना… पर थका हुआ, टूटा हुआ…
“मैं लौट आया हूँ…” — वो कह रहा था।
रिया की आंखें छलक उठीं।
उसने कुछ नहीं पूछा, कुछ नहीं कहा।
बस चुपचाप उसके कंधे पर सिर रख दिया।
“तुम्हें पता है?” — रिया ने फुसफुसाया,
“मैंने कभी तुम्हें मरा हुआ नहीं माना…”
“मैं रोज़ तुम्हारी धड़कनों में जीती रही।
वो बेंच अब फिर से गवाह बन चुकी थी —
एक अधूरी मोहब्बत के पूरे होने की।
– आर्यन की वापसी]
वो रात ठंडी थी, पर आर्यन का दिल तप रहा था।
वेद की असलियत जानने के बाद, उसके अंदर कुछ टूट गया था।
जिसे वो दोस्त समझता था, वो दरअसल अयान था —
रिया का वो अधूरा अतीत, जिससे वो खुद को जोड़ बैठा था।
आर्यन ने रिया के घर के बाहर आकर रुकते हुए सोचा —
“शायद अब मैं किसी का नहीं रहा… या फिर, मैं अब भी किसी के हिस्से का हूँ…”
दूसरी तरफ़, रिया ने पहली बार अयान के सामने आर्यन का ज़िक्र किया।
“तुम जब नहीं थे, तो कोई था जो मेरे टूटे सुरों को थामे रहा…”
अयान ने उसकी आंखों में देखा —
“क्या मैं अब भी वक़्त के उस खाली पन्ने पर लिख सकता हूँ?”
रिया चुप रही… क्योंकि उसके जवाब में दो नाम थे, पर जगह एक थी।
– वो तीन चेहरों वाला सच]
अगली सुबह…
एक पुरानी कैफ़े, तीन कुर्सियाँ, और तीन चेहरे —
जो कभी एक-दूसरे के लिए अनजान थे,
अब एक-दूसरे की रगों में धड़क रहे थे।
आर्यन, अयान और रिया — तीनों आमने-सामने बैठे थे।
कोई कुछ नहीं बोल रहा था।
अयान ने सबसे पहले कहा —
“मुझे माफ़ कर दो, आर्यन।
मैं वेद बनकर तुमसे झूठ जीता रहा।
पर यक़ीन मानो, वो दोस्ती झूठी नहीं थी।”
आर्यन की आंखों में कोई शिकायत नहीं थी,
बस एक अजीब सी हार थी —
“माफ़ी की ज़रूरत नहीं, अयान। तुम्हारी मोहब्बत अधूरी थी, मेरी तो कभी शुरू ही नहीं हुई।”
रिया की आंखें भर आईं।
उसने दोनों का हाथ थामा और कहा —
“शायद मैं ही वो वजह थी, जिसने दो सच्चे लोगों को उलझा दिया।”
और फिर… चुप्पी के उस कैफ़े में, एक और चुप्पी उतर आई।
लेकिन अब ये चुप्पी सज़ा नहीं थी —
बल्कि एक नई शुरुआत की दस्तक थी।
कहानी अभी जा रही है
(जारी है अब आगे का भाग होगा................... )
क्या आर्यन अब रिया और अयान की कहानी से दूर हो जाएगा?
या मोहब्बत फिर से कोई नया रास्ता बना लेगी?
क्या तीनों का रिश्ता टूटेगा…
या कोई ऐसा मोड़ आएगा, जहाँ "वक़्त" ख़ुद रुक जाएगा?