(एक प्रेम, जो राज्य का नहीं… आत्मा का था) विरक्त राजकुमार राजकुमार विष्णु का जन्म राजघराने में हुआ था, लेकिन मन उसका वन और वेदांत में बसता था। बचपन से ही उसके भीतर एक अलग चंचलता थी – ना तख़्त की लालसा, ना युद्ध की अभिलाषा। पिता ने उसे 15वें वर्ष में ही विद्या व धर्म के लिए आश्रम भेज दिया — जहाँ ऋषियों के बीच जीवन अनुशासन, संयम और सेवा में बीतता। वहीं एक दिन वो उसे मिली। वो कन्या… राध्या आश्रम की रसोई में एक कन्या सेवा करती थी — राध्या। ना वह राजकन्या थी, ना कोई युद्ध नायिका, लेकिन उसकी आंखों में ऐसी शांति थी कि अग्नि भी ठंडी हो जाए।
जो कहा नहीं गया - 1
जो कहा नहीं गया (एक प्रेम, जो राज्य का नहीं… आत्मा का था) विरक्त राजकुमार राजकुमार विष्णु का जन्म में हुआ था, लेकिन मन उसका वन और वेदांत में बसता था। बचपन से ही उसके भीतर एक अलग चंचलता थी – ना तख़्त की लालसा, ना युद्ध की अभिलाषा। पिता ने उसे 15वें वर्ष में ही विद्या व धर्म के लिए आश्रम भेज दिया — जहाँ ऋषियों के बीच जीवन अनुशासन, संयम और सेवा में बीतता। वहीं एक दिन वो उसे मिली। वो कन्या… राध्या आश्रम की रसोई में एक कन्या सेवा करती थी — राध्या। ना वह कहानी अभी खत्म नहीं है दोस्तों यह कहानी का पहला भाग है अगर आपको कहानी अच्छी लगी हो ओर आप दूसरे भाग को भी पढ़ना चाहते है तो अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें धन्यवाद ...Read More
जो कहा नहीं गया - 2
जो कहा नहीं गया – भाग 2(एक मौन… जो छाया बनकर चलता रहा)सन्नाटे में गूंजता नामसमय की रेत बहुत बहा ले गई थी।अब राजा विष्णु का तेज़ शांत पड़ चुका था, शरीर वृद्ध हो गया था, लेकिन मन की लौ अब भी धधक रही थीकिसी एक स्मृति में, जो शब्दों से नहीं… मौन से जुड़ी थी।हर पूर्णिमा को, वे एक थाली सजाते — उसमें चंपा के फूल, एक दीपक, और एक पुरानी चिट्ठी रखते।चिट्ठी अब पीली पड़ चुकी थी, किनारे घिस चुके थे…लेकिन हर बार जब वे उसे पढ़ते, ऐसा लगता मानो पहली बार पढ़ रहे हों।वो चिट्ठी राध्या ...Read More
जो कहा नहीं गया - 3
जो कहा नहीं गया – भाग 3चुप्पियों के बीच पुनर्मिलन"वो अब मौन में जी रहे थे…हर पूर्णिमा को वो थाली सजाते,और किसी आहट की प्रतीक्षा करते।शब्द नहीं बचे थे उनके पास…लेकिन प्रेम अब भी वहीं था —जो कहा नहीं गया बनकर।"वर्तमान युग – ऋषिकेशहिमालय की गोद में बसा, ऋषिकेश।एक शांत, आध्यात्मिक नगर, जहाँ गंगा की लहरों में शांति भी बहती है और रहस्य भी।यहाँ एक पुरानी किताबों की दुकान है — "शब्दाश्रम"।कहते हैं कुछ किताबें वहाँ केवल पढ़ने के लिए नहीं रखी गईं…वो किसी को बुलाने के लिए रखी गईं।हर बुधवार, उसी दुकान के पिछले कोने में एक लड़की ...Read More
जो कहा नहीं गया - 4
जो कहा नहीं गया – भाग 4(प्रतिध्वनि की पुकार)स्थान: हरिद्वार, गंगा तटसमय: वर्तमानगंगा किनारे स्थित पुराने शिव मंदिर की की ध्वनि रिया के भीतर के मौन को झकझोर रही थी। वह धीरे-धीरे मंदिर की सीढ़ियाँ उतरी, हाथ में वही पुरानी भूरे रंग की डायरी थामे हुए — जिसकी जिल्द पर हल्के अक्षरों में उकेरा गया था:“राजा विष्णु की चुप्पियों में प्रेम की प्रतिध्वनि है।”यह पंक्ति उसे बेचैन कर रही थी। क्या यह किसी अधूरे प्रेम की दास्तान थी, या फिर किसी भूले हुए अध्याय का संकेत? उसकी आँखों में सवालों का समंदर था, और हृदय में एक अनजाना कंपन।वह ...Read More
जो कहा नहीं गया - 5
(प्रतिध्वनि की पुकार)स्थान: काशीसमय: कुछ दिन बादडायरी के अंतिम पृष्ठ पर उभरा एक ही शब्द — “काशी” — रिया लिए महज़ कोई स्थान नहीं था, वह किसी गहरे संकेत की तरह था। हरिद्वार की हवेली में मिली “1892” की पुरानी तस्वीर, बाबा की अधूरी बातें, और उस वृद्ध तपस्वी की रहस्यमय मुस्कान — सब कुछ जैसे इसी ओर इशारा कर रहा था।इस बार रिया ने कोई सवाल नहीं किया। उसने ट्रेन पकड़ी और बनारस की ओर निकल पड़ी — उस शहर की ओर, जो खुद एक जीवित कथा है।रास्ते भर वही डायरी उसकी गोद में खुली रही। उसकी आँखें ...Read More