खामोश परछाइयाँ

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दिल्ली का सेंट मैरी कॉलेज। गर्मियों का पहला दिन। नए सेशन का पहला दिन हमेशा हलचल भरा होता है। हॉस्टल में नए चेहरे, कैंटीन में भीड़, और हर किसी में कॉलेज लाइफ़ का रोमांच। आर्यन भी इन्हीं नए छात्रों में से था। साधारण-सा, मज़ाकिया, और जल्दी दोस्त बनाने वाला। पहली क्लास में उसकी नज़र जैसे ही पड़ी — एक लड़की… नैना। वह बाक़ियों से अलग थी। सबके बीच चुपचाप, कोने की बेंच पर बैठी। चेहरे पर हल्की उदासी, आँखों में कोई गहरा राज़। दोस्तों ने मज़ाक किया — "भाई, उस पर दिल मत लगाना। वो किसी से बात ही नहीं करती।" लेकिन आर्यन को जाने क्यों उसकी चुप्पी सबसे ज़्यादा आकर्षित कर रही थी।

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खामोश परछाइयाँ - 1

अध्याय 1 – नई शुरुआतदिल्ली का सेंट मैरी कॉलेज। गर्मियों का पहला दिन।नए सेशन का पहला दिन हमेशा हलचल होता है। हॉस्टल में नए चेहरे, कैंटीन में भीड़, और हर किसी में कॉलेज लाइफ़ का रोमांच।आर्यन भी इन्हीं नए छात्रों में से था। साधारण-सा, मज़ाकिया, और जल्दी दोस्त बनाने वाला।पहली क्लास में उसकी नज़र जैसे ही पड़ी — एक लड़की… नैना।वह बाक़ियों से अलग थी।सबके बीच चुपचाप, कोने की बेंच पर बैठी।चेहरे पर हल्की उदासी, आँखों में कोई गहरा राज़।दोस्तों ने मज़ाक किया —"भाई, उस पर दिल मत लगाना। वो किसी से बात ही नहीं करती।"लेकिन आर्यन को जाने ...Read More

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खामोश परछाइयाँ - 2-3

रिया के कमरे की खिड़की अब भी आधी खुली थी। बाहर गहरी रात का सन्नाटा था, पेड़ों की शाखें में हिलकर अजीब-सी फुसफुसाहट पैदा कर रही थीं। हल्की चाँदनी कमरे में उतर रही थी और उसी चाँदनी में वह परछाई साफ़-साफ़ दिख रही थी।रिया का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसने जल्दी से खिड़की को बंद कर दिया, लेकिन तभी उसके पीछे से बर्फ़ जैसी ठंडी हवा का झोंका गुज़रा। रिया ने काँपते हुए पलटकर देखा—कमरा तो खाली था, लेकिन माहौल अजीब-सा भारी हो गया था।अचानक उसकी मेज़ पर रखी एक पुरानी डायरी अपने-आप खुल गई।रिया हैरान रह गई—ये ...Read More

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खामोश परछाइयाँ - 4-5

रिया ने डायरी का आख़िरी पन्ना पढ़ने के बाद तय कर लिया कि उसे उस पुरानी हवेली तक जाना होगा। हवेली शहर के बाहरी इलाक़े में थी, जंगल के बीच, जहाँ लोग जाते हुए डरते थे।शाम का समय था जब रिया वहाँ पहुँची। टूटा हुआ गेट, झाड़ियों से घिरी राह और हवेली की दीवारों पर चढ़ी काई… सब देखकर उसकी रूह काँप गई।जैसे ही उसने भीतर क़दम रखा, दरवाज़ा अपने आप पीछे से बंद हो गया। अंदर घुप अंधेरा और सन्नाटा था। हवा में नमी और सड़ांध का अहसास।अचानक, हवेली की दीवारों से अजीब-सी फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं—"रिया… वापस ...Read More

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खामोश परछाइयाँ - 6

रिया ने हवेली की पुरानी अलमारी से एक आईना निकाला। धूल हटाते ही उस पर दरारें उभर आईं, और उसे अपनी माँ संध्या का चेहरा दिखाई दिया।वो चौंक गई — "अम्मी… यहाँ?"आईने से धीमी आवाज़ आई, “रिया… वो जो कहानी तू पढ़ रही है, उसमें तेरा नाम भी लिखा है।”रिया का दिल जैसे थम गया। उसने डायरी खोली — आख़िरी पन्ने पर लिखा था:“अगर ये सच किसी को मिले, तो जान लेना कि ज़ोया का गुनाह उसका नहीं… मेरा था।”अचानक हवा का झोंका आया, और कमरे की लाइटें बुझ गईं।दीवार पर एक परछाई बनी — वही अर्जुन की रूह।अर्जुन ...Read More