अध्याय 1 – नई शुरुआत
दिल्ली का सेंट मैरी कॉलेज। गर्मियों का पहला दिन।
नए सेशन का पहला दिन हमेशा हलचल भरा होता है। हॉस्टल में नए चेहरे, कैंटीन में भीड़, और हर किसी में कॉलेज लाइफ़ का रोमांच।
आर्यन भी इन्हीं नए छात्रों में से था। साधारण-सा, मज़ाकिया, और जल्दी दोस्त बनाने वाला।
पहली क्लास में उसकी नज़र जैसे ही पड़ी — एक लड़की… नैना।
वह बाक़ियों से अलग थी।
सबके बीच चुपचाप, कोने की बेंच पर बैठी।
चेहरे पर हल्की उदासी, आँखों में कोई गहरा राज़।
दोस्तों ने मज़ाक किया —
"भाई, उस पर दिल मत लगाना। वो किसी से बात ही नहीं करती।"
लेकिन आर्यन को जाने क्यों उसकी चुप्पी सबसे ज़्यादा आकर्षित कर रही थी।
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अध्याय 2 – दोस्ती की शुरुआत
धीरे-धीरे क्लासेस शुरू हुईं।
आर्यन ने नैना से बात करने की कोशिश की।
पहले तो उसने छोटे-छोटे जवाब दिए, फिर धीरे-धीरे खुलने लगी।
कैंटीन में कभी चाय, लाइब्रेरी में किताबें, और कैंपस की लंबी वॉक — दोस्ती गहराती चली गई।
आर्यन को लगने लगा कि वह नैना से मोहब्बत करने लगा है।
लेकिन साथ ही उसने कुछ अजीब बातें भी नोटिस करनी शुरू कर दीं —
नैना हमेशा शाम के बाद हॉस्टल से बाहर निकलने से डरती थी।
कई बार वह लाइब्रेरी के पुराने खंडहर वाले हिस्से में अकेले चली जाती थी।
और एक-दो बार आर्यन ने देखा कि वह किसी से बात कर रही थी… लेकिन वहाँ कोई मौजूद नहीं था।
जब आर्यन ने हल्के मज़ाक में पूछा,
"नैना, तुम किससे बातें करती रहती हो?"
तो नैना का चेहरा अचानक सख़्त हो गया।
वह गुस्से से बोली —
"कभी ये सवाल मत पूछना, आर्यन!"
आर्यन चुप हो गया, लेकिन उसके मन में एक डर और जिज्ञासा दोनों पनपने लगे।
Part -01
कॉलेज में आते-जाते अब एक महीना बीत चुका था।
आर्यन और नैना की दोस्ती अब सबके सामने साफ़ नज़र आने लगी थी। क्लास के साथी अक्सर उन्हें देखकर हँसी-मज़ाक करते,
"ओहो, देखो हमारी लव बर्ड्स आ गईं!"
आर्यन हँसकर टाल देता, लेकिन नैना हमेशा हल्की मुस्कान देकर चुप हो जाती।
लेकिन इस दोस्ती के बीच आर्यन का मन अब धीरे-धीरे बेचैन रहने लगा था।
उसे बार-बार वही सवाल सताता — नैना के पीछे कौन सा राज़ है? वह किससे बातें करती है?
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हॉस्टल की रातें
आर्यन कॉलेज हॉस्टल में ही रहता था। हॉस्टल पुरानी इमारत थी, जिसकी दीवारों पर नमी और सीलन थी।
रात को अकसर लंबी गलियारों में हवा सीटी बजाती थी।
एक रात, करीब 11 बजे, जब वह अपनी असाइनमेंट लिख रहा था, अचानक उसे दरवाज़े के बाहर किसी के कदमों की आहट सुनाई दी।
पहले उसने सोचा कोई दोस्त मज़ाक कर रहा होगा। लेकिन जब उसने दरवाज़ा खोला, तो गलियारा खाली था।
हल्की पीली लाइट टिमटिमा रही थी।
उसने कंधे उचकाकर दरवाज़ा बंद किया।
लेकिन तभी उसे लगा जैसे किसी ने धीमे स्वर में उसका नाम पुकारा हो —
"आर्यन…"
उसका दिल जोर से धड़कने लगा।
वह दौड़कर खिड़की से बाहर झाँकने लगा। चारों ओर अंधेरा था।
कुछ देर बाद आवाज़ गायब हो गई।
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आईने की झलक
अगले दिन सुबह क्लास के लिए तैयार होते समय उसने आईने में देखा।
चेहरे पर झपकी से बनी थकान साफ़ झलक रही थी।
वह चेहरा धोने गया और वापस आया तो अचानक उसके रोंगटे खड़े हो गए।
आईने में उसने अपने पीछे नैना की झलक देखी।
वह मुस्कुरा रही थी, लेकिन आँखें अजीब तरह से खाली थीं।
आर्यन ने पलटकर देखा — पीछे कोई नहीं था।
उसने फिर आईना देखा — अब सब सामान्य था।
"क्या मैं पागल हो रहा हूँ?" उसने सोचा।
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लाइब्रेरी का खंडहर
उस शाम आर्यन ने तय किया कि वह नैना का पीछा करेगा।
क्लास ख़त्म होते ही उसने देखा कि नैना सीधे कैंपस के पुराने हिस्से की तरफ़ जा रही थी — वही जगह जहाँ लाइब्रेरी का पराना खंडहर पड़ा था।
यह हिस्सा अब उपयोग में नहीं था। दीवारों पर बेलें चढ़ी हुई थीं, खिड़कियाँ टूटी हुईं, और अंदर अंधेरा पसरा हुआ था।
आर्यन धीरे-धीरे उसका पीछा करते हुए अंदर पहुँचा।
अचानक उसने देखा — नैना वहाँ अकेली खड़ी थी और किसी से धीमे स्वर में बात कर रही थी।
उसकी आवाज़ काँप रही थी —
"कृपया… अब मुझे अकेला छोड़ दो। मैं और नहीं सह सकती।"
आर्यन हैरान रह गया।
वहाँ कोई दूसरा नहीं था, फिर वह किससे बात कर रही थी?
वह पास जाने ही वाला था कि नैना ने अचानक उसकी ओर देखा।
उसकी आँखों में डर और गुस्सा दोनों थे।
"तुम यहाँ क्यों आए हो, आर्यन?!"
आर्यन घबरा गया।
"मैं… मैं तो बस…"
लेकिन नैना ने बिना कुछ सुने तेजी से वहाँ से निकलना बेहतर समझा।
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हॉस्टल की दूसरी रात
उस रात हॉस्टल लौटकर आर्यन बहुत बेचैन था।
किताबों पर ध्यान नहीं था, दोस्तों से बातें करने का मन नहीं था।
करीब 2 बजे रात वह अचानक नींद से जागा।
कमरे में अजीब-सी ठंडक थी।
वह उठा तो देखा — दरवाज़ा अपने आप धीरे-धीरे खुल रहा था।
गलियारे में वही कदमों की आवाज़।
"कौन है?!" आर्यन चिल्लाया।
कोई जवाब नहीं आया।
वह बाहर निकला और धीरे-धीरे चलता हुआ कॉमन हॉल तक पहुँचा।
अचानक उसकी नज़र दीवार पर पड़ी —
नमी से बने धब्बों में एक चेहरा उभर रहा था।
वह चेहरा… किसी लड़के का था।
खून से लथपथ, खाली आँखों वाला।
और फिर धीरे-धीरे होंठ हिले —
"दूर रहो… नैना सिर्फ मेरी है।"
आर्यन चीख पड़ा और अपने कमरे की ओर भागा।
उसने दरवाज़ा बंद किया और पूरी रात काँपते हुए जागता रहा।
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बेचैन सुबह
सुबह उठकर उसने तय किया कि अब वह यह सब नैना से छुपाएगा नहीं।
कॉलेज पहुँचते ही उसने सीधे उससे पूछा —
"नैना, सच बताओ। ये सब क्या हो रहा है? मैं अब और नहीं सह सकता।"
नैना कुछ देर चुप रही।
उसकी आँखें नम हो गईं।
वह धीमे स्वर में बोली —
"आर्यन… अगर मैंने तुम्हें सच बताया, तो तुम मुझे छोड़ दोगे।"
आर्यन ने उसका हाथ पकड़ लिया —
"चाहे जो भी सच हो, मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।"
नैना ने उसकी आँखों में झाँका, जैसे पहली बार भरोसा कर रही हो।
फिर वह बोली —
"ठीक है… आज रात लाइब्रेरी के खंडहर में मुझसे मिलना। वहाँ मैं तुम्हें सब सच बताऊँगी।"
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उस रात का इंतज़ार आर्यन के लिए सबसे लंबा था।
वह घड़ी-घड़ी दीवार पर घड़ी देखता रहा।
आख़िरकार, 11 बजे वह कॉलेज के उस पुराने हिस्से की ओर बढ़ा।
हवा में ठंडक थी, चारों ओर सन्नाटा पसरा था।
लाइब्रेरी का खंडहर सामने था।
दरवाज़े पर पहुँचते ही उसकी रीढ़ में सिहरन दौड़ गई —
दरवाज़ा आधा खुला था, और अंदर से एक धीमी आवाज़ आ रही थी…
"मैंने कहा था ना, नैना… तुम सिर्फ मेरी हो।"
आर्यन का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
अंदर अंधेरा था।
वह हिम्मत करके दरवाज़ा पार करता है… और यहीं अध्याय खत्म होता है।