अंधेरे से इंसाफ तक

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सागरपुर नाम का शहर, जो न तो पूरी तरह गाँव था और न ही पूरी तरह महानगर। यहाँ न तो मेट्रो की गूंज थी और न ही ऊँची-ऊँची इमारतों की चकाचौंध। लेकिन यहाँ के लोग अपनी ज़िंदगी जीने के लिए संघर्ष ज़रूर करते थे। यही वह शहर था जहाँ हर सुबह दूधवाले की घंटी, मंदिर की घंटियों और बच्चों के स्कूल जाने की आहट से शुरू होती थी। शहर की तंग गलियों में एक छोटा-सा मकान था। सीमेंट और ईंट से बना साधारण घर, जिसके आँगन में तुलसी का पौधा और दीवारों पर समय-समय पर उखड़ता प्लास्टर। यही था अनाया का घर।

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अंधेरे से इंसाफ तक - 1

भाग 1 – अंधेरी सड़कों का सन्नाटासागरपुर नाम का शहर, जो न तो पूरी तरह गाँव था और न पूरी तरह महानगर। यहाँ न तो मेट्रो की गूंज थी और न ही ऊँची-ऊँची इमारतों की चकाचौंध। लेकिन यहाँ के लोग अपनी ज़िंदगी जीने के लिए संघर्ष ज़रूर करते थे। यही वह शहर था जहाँ हर सुबह दूधवाले की घंटी, मंदिर की घंटियों और बच्चों के स्कूल जाने की आहट से शुरू होती थी।शहर की तंग गलियों में एक छोटा-सा मकान था। सीमेंट और ईंट से बना साधारण घर, जिसके आँगन में तुलसी का पौधा और दीवारों पर समय-समय पर ...Read More

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अंधेरे से इंसाफ तक - 2

भाग 2 – लौटती राह का सन्नाटाफिल्म हॉल से निकलते ही रात गहराने लगी थी। ठंडी हवा चेहरे से रही थी और सागरपुर की सड़कें धीरे-धीरे वीरान होती जा रही थीं। दिन में जहाँ इन गलियों में चहल-पहल रहती थी, वहीं अब यह इलाका एकदम शांत और सुनसान हो गया था।अनाया ने अपने दुपट्टे को कसकर गले में लपेटा और अभय से बोली—“रात काफ़ी हो गई है… जल्दी घर चलना चाहिए। माँ-पापा भी फ़ोन कर चुके होंगे।”अभय ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा—“हाँ, चलो। मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ। लेकिन इस वक्त ऑटो मिलना मुश्किल होगा।”दोनों सड़क किनारे ...Read More