Andhere se Insaan tak - 1 in Hindi Thriller by mood Writer books and stories PDF | अंधेरे से इंसाफ तक - 1

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अंधेरे से इंसाफ तक - 1

भाग 1 – अंधेरी सड़कों का सन्नाटा

सागरपुर नाम का शहर, जो न तो पूरी तरह गाँव था और न ही पूरी तरह महानगर। यहाँ न तो मेट्रो की गूंज थी और न ही ऊँची-ऊँची इमारतों की चकाचौंध। लेकिन यहाँ के लोग अपनी ज़िंदगी जीने के लिए संघर्ष ज़रूर करते थे। यही वह शहर था जहाँ हर सुबह दूधवाले की घंटी, मंदिर की घंटियों और बच्चों के स्कूल जाने की आहट से शुरू होती थी।

शहर की तंग गलियों में एक छोटा-सा मकान था। सीमेंट और ईंट से बना साधारण घर, जिसके आँगन में तुलसी का पौधा और दीवारों पर समय-समय पर उखड़ता प्लास्टर। यही था अनाया का घर।

अनाया… उम्र 22 साल। आँखों में सपने, और दिल में एक ऐसा जज़्बा जो उसे बाकियों से अलग बनाता था। बचपन से ही उसकी रुचि पढ़ाई में थी। जब बाकी बच्चे पतंग उड़ाने या गिल्ली-डंडा खेलने में समय बिताते, तब वह किताबें खोलकर बैठ जाती। माँ अक्सर कहतीं—
“बेटी, थोड़ा खेल भी लिया कर, वरना अकेली पड़ जाएगी।”
लेकिन अनाया मुस्कराकर जवाब देती—
“माँ, अगर अभी खेलूँगी तो सपनों को कब पूरा करूँगी?”

उसका सबसे बड़ा सपना था डॉक्टर बनना। उसके पिता राजेन्द्र रेलवे विभाग में क्लर्क थे, और माँ सुशीला सिलाई-बुनाई से घर का खर्च चलाने में मदद करती थीं। घर अमीर नहीं था, लेकिन उम्मीदों और सपनों से भरा था। पिता का मानना था कि “बेटी पढ़ेगी तभी घर का भविष्य बदलेगा।”

अनाया की एक डायरी थी — नीले रंग की, जिस पर उसने पहला पन्ना खोलकर बड़े अक्षरों में लिखा था:
“मैं अंधेरे में भी रोशनी ढूँढ लूँगी।”

इस डायरी में वह हर दिन कुछ न कुछ लिखती। कभी अपने सपनों के बारे में, कभी अपनी परेशानियों के बारे में। जब कोई कहता कि “गरीब घर की लड़की डॉक्टर कैसे बनेगी?”, तो वह अपनी डायरी में लिखती—
“लोगों को जवाब सपनों से नहीं, सफलता से दूँगी।”

कॉलेज का सफर आसान नहीं था। मेडिकल पढ़ाई महंगी थी, लेकिन अनाया ने कभी हार नहीं मानी। वह ट्यूशन पढ़ाती, ताकि अपनी किताबों और नोट्स का खर्च खुद निकाल सके। उसकी मेहनत देखकर माँ-बाप भी उसके लिए हर संभव त्याग करते।

कॉलेज में उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी रिया। रिया थोड़ी शरारती और बेफिक्र स्वभाव की थी। दोनों का स्वभाव बिल्कुल अलग था, लेकिन यही फर्क उनकी दोस्ती को मजबूत बनाता था। रिया कहती—
“तू हमेशा किताबों में डूबी रहती है, लाइफ़ का मज़ा भी ले।”
अनाया मुस्कराकर कहती—
“लाइफ़ का मज़ा तब आएगा जब मैं किसी की जान बचाऊँगी।”

अनाया का एक और खास साथी था—अभय। बचपन से ही उसका पड़ोसी और अब कॉलेज का साथी भी। शांत, ज़िम्मेदार और ईमानदार। अभय हमेशा उसके साथ खड़ा रहता। वह उसकी रक्षा करता, हौसला देता और हर मुश्किल में मददगार बनता। अनाया को अभय पर भरोसा था कि अगर कभी वह डर गई, तो अभय उसे संभाल लेगा।

16 दिसम्बर की सुबह थी। ठंड अपनी पूरी सख्ती दिखा रही थी। कोहरे से ढकी सड़कें और ठंडी हवाएँ हर किसी को कांपा रही थीं। उस दिन कॉलेज में बड़ा सेमिनार था। अनाया ने कई हफ्तों तक तैयारी की थी। जब वह मंच पर खड़ी हुई, तो सबकी निगाहें उसी पर टिक गईं। उसने आत्मविश्वास से बोलना शुरू किया और हर सवाल का जवाब दिया। प्रस्तुति खत्म होते ही पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।

प्रोफेसर ने कहा—
“अनाया, तुम्हारे अंदर सचमुच एक डॉक्टर बनने की क्षमता है।”
यह सुनकर उसका चेहरा खिल उठा।

सेमिनार खत्म होने के बाद अभय उसके पास आया। बोला—
“बहुत अच्छा बोली तू। अब एक काम कर, थोड़ा रिलैक्स भी कर ले। चल, आज फिल्म देखने चलते हैं।”
पहले तो अनाया ने मना किया—“इतना काम है, पापा भी इंतज़ार कर रहे होंगे।”
लेकिन फिर उसने सोचा—कभी-कभी अपने लिए भी जीना चाहिए।
वह मुस्कराकर बोली—“ठीक है, चलते हैं।”

शाम ढल चुकी थी। दोनों शहर के पुराने सिनेमाघर पहुँचे। फिल्म देखते हुए दोनों हँसते-मुस्कुराते रहे। कुछ घंटों के लिए अनाया ने अपनी चिंताओं को भुला दिया। उसने महसूस किया कि ज़िंदगी सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ नहीं है, इसमें हँसी और दोस्ती भी ज़रूरी है।

फिल्म खत्म होते-होते रात के नौ बज गए। दोनों बाहर निकले तो सड़कें लगभग खाली थीं। हल्की धुंध और ठंडी हवाएँ रात को और भी भयावह बना रही थीं।

अभय ने कहा—“अब जल्दी घर पहुँचना चाहिए।”
दोनों ने ऑटो और रिक्शा ढूँढने की कोशिश की, लेकिन उस समय सागरपुर की सड़कें जैसे वीरान हो चुकी थीं। तभी एक मिनी बस धीरे-धीरे उनके पास आकर रुकी।

ड्राइवर ने खिड़की से सिर निकालकर कहा—
“कहाँ जाना है? आ जाइए, यही रास्ता है।”

बस के अंदर चार-पाँच लोग पहले से बैठे थे। बाहर से देखने पर सब सामान्य लग रहा था।

अनाया ने कहा—“चलो, वरना और देर हो जाएगी।”
अभय ने थोड़ी देर सोचा। उसके मन में हल्की-सी शंका उठी। उसने चारों तरफ़ देखा—कोई दूसरा साधन नहीं था। बाहर की ठंड और सुनसान सड़क देखकर उसने हामी भर दी। दोनों बस में चढ़ गए।

बस धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। शुरू में सब सामान्य लगा। ड्राइवर गुनगुनाते हुए गाना गा रहा था। लेकिन धीरे-धीरे माहौल बदलने लगा। बस में बैठे लोग बार-बार अनाया और अभय की तरफ़ देखने लगे। उनकी निगाहों में अजीब-सी चमक थी।

उनमें से एक ने अभय से कहा—
“क्यों भाई, बड़ी मौज कर रहे हो?”

अभय ने नज़रअंदाज़ किया, लेकिन उसके मन में बेचैनी और बढ़ गई। उसने ड्राइवर से कहा—“भाई साहब, जल्दी रोक दीजिए, हमें उतरना है।”
लेकिन ड्राइवर ने कोई जवाब नहीं दिया। बल्कि उसने गाड़ी और तेज़ कर दी।

अनाया ने खिड़की से बाहर देखा। सड़कें सुनसान थीं। दोनों तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा था। दूर-दूर तक इंसान का कोई निशान नहीं था। उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसने मन ही मन सोचा—क्या हमने सही फैसला किया?

अभय ने उसकी आँखों में डर पढ़ लिया। उसने उसका हाथ थाम लिया और धीरे से कहा—
“डर मत, मैं हूँ ना।”

लेकिन उसके अपने शब्दों में भी आत्मविश्वास नहीं था।

बस अब शहर से हटकर वीराने की ओर बढ़ रही थी। अंदर का माहौल और भी डरावना होता जा रहा था। अनाया का मन कह रहा था कि कुछ बहुत बुरा होने वाला है।