भाग 5 – इंसाफ की जंग (बहुत विस्तार से)
अस्पताल में अनाया और अभय की हालत नाज़ुक थी। चारों तरफ़ लोग जुटे हुए थे। हर कोई गुस्से में था। मीडिया लगातार रिपोर्ट कर रही थी। सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा था।
पुलिस ने तुरंत आरोपियों की तलाश शुरू की।
बस का नंबर पहले ही गवाहों से मिल चुका था। सीसीटीवी कैमरों की मदद से पुलिस ने जल्द ही बस को ढूँढ लिया।
उस बस के अंदर से खून के धब्बे, फटे कपड़े और शराब की बोतलें मिलीं। यह सब सबूत सीधे-सीधे उन दरिंदों की ओर इशारा कर रहे थे।
एक-एक करके पुलिस ने सभी आरोपियों को पकड़ लिया।
किसी को गाँव से, किसी को ठेके से और किसी को बस डिपो से।
जैसे ही खबर आई कि आरोपी पकड़े गए हैं, शहर की सड़कों पर लोगों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया।
लेकिन वो जश्न अधूरा था, क्योंकि असली लड़ाई तो अब शुरू होनी थी – न्याय की लड़ाई।
पहली बार जब आरोपियों को कोर्ट में पेश किया गया, तो अदालत का माहौल गरमा गया।
भीड़ इतनी थी कि पुलिस को अतिरिक्त सुरक्षा लगानी पड़ी।
लोगों के गुस्से का आलम यह था कि जब आरोपी वैन से बाहर आए तो भीड़ ने उन पर जूते-चप्पल फेंक दिए।
जज ने साफ कहा –
“यह मामला सामान्य नहीं है। यह समाज के दिल को हिला देने वाला अपराध है। हम इसे फास्ट-ट्रैक कोर्ट में चलाएँगे।”
टीवी चैनल लगातार यह दिखा रहे थे:
“क्या अनाया को इंसाफ मिलेगा?”
“दरिंदों को मिलेगी सजा या फिर कानून के चंगुल से बच जाएँगे?”
हर घर में यही चर्चा थी।
हर गली, हर नुक्कड़ पर लोग इसी मुद्दे पर बहस कर रहे थे।
छोटे-छोटे बच्चे तक मोमबत्ती लेकर मार्च कर रहे थे।
लोग कहते—
“हमारी बहन के साथ हुआ है, अब हम चुप नहीं रहेंगे।”
अनाया की माँ हर रोज़ अस्पताल में बैठी रहतीं।
वो हाथ जोड़कर डॉक्टरों से कहतीं—
“बस मेरी बेटी को एक बार और मुस्कुराते हुए देखना चाहती हूँ।”
अभय का परिवार भी बेटे की हालत देखकर टूट चुका था।
वो बार-बार कहता—
“मैं ज़िंदा रहूँगा… ताकि गवाही दे सकूँ।”
जैसे-जैसे मामला बढ़ा, नेताओं ने भी दखल देना शुरू किया।
कोई अस्पताल आकर परिवार से मिलने लगा, कोई बयान देने लगा कि “दोषियों को कड़ी सजा मिलेगी।”
लेकिन जनता सब समझ रही थी।
भीड़ चिल्लाती—
“हमें वादे नहीं, इंसाफ चाहिए।”
जाँच पूरी होने के बाद मामला अदालत में चला।
सरकारी वकील ने कहा—
“माननीय न्यायालय, ये अपराध मानवता के खिलाफ़ है। पीड़िता के साथ दरिंदगी हुई है, और सबूत बिल्कुल साफ हैं। यह मामला फाँसी से कम की सजा का हकदार नहीं है।”
गवाहों को बुलाया गया।
अभय ने टूटती आवाज़ में गवाही दी—
“माननीय जज साहब, मैंने सब कुछ अपनी आँखों से देखा है। मेरी दोस्त के साथ जो हुआ, वह किसी इंसानियत पर धब्बा है। दरिंदों ने हम दोनों को मार डालने की कोशिश की। मैं चाहता हूँ कि उन्हें ऐसी सजा मिले जो आने वाली पीढ़ियों के लिए सबक बने।”
आरोपियों के वकील ने लाख कोशिश की।
कभी कहा कि “ये सब झूठा है”, कभी कहा कि “लड़की की पहचान नहीं हो रही।”
लेकिन हर बार सबूत, डीएनए रिपोर्ट, गवाह और मेडिकल रिपोर्ट उनके झूठ को तोड़ देती।
सुनवाई के दौरान अदालत के बाहर हजारों लोग जमा हो जाते।
वो नारे लगाते—
“अनाया को इंसाफ दो।”
“फाँसी दो, फाँसी दो।”
लोगों की यह एकता सरकार पर और अदालत पर दबाव बना रही थी।
कई महीनों की सुनवाई के बाद आख़िरकार अदालत ने तारीख़ दे दी—
“अगली सुनवाई पर फैसला सुनाया जाएगा।”
पूरा शहर उस दिन का इंतज़ार करने लगा।
हर किसी की नज़र सिर्फ उस एक तारीख़ पर टिकी थी।
सर्दियों की एक ठंडी सुबह थी। अदालत के बाहर हजारों लोग जमा थे। हाथों में तख्तियाँ थीं—
“अनाया को इंसाफ चाहिए।”
“दोषियों को फाँसी दो।”
पुलिस ने चारों तरफ़ सुरक्षा घेराबंदी कर रखी थी। मीडिया वैनें बाहर खड़ी थीं, हर न्यूज़ चैनल लाइव प्रसारण कर रहा था। लोग साँस रोके उस पल का इंतज़ार कर रहे थे, जो शायद आने वाले कई दशकों की दिशा तय करने वाला था।
कोर्ट के अंदर का माहौल बेहद तनावपूर्ण था।
एक तरफ़ अभियोजन पक्ष (सरकारी वकील), दूसरी तरफ़ बचाव पक्ष (आरोपियों के वकील), और बीच में बैठे माननीय जज—जिनकी नज़रों में पूरे देश की उम्मीदें झलक रही थीं।
अनाया के माता-पिता पहली पंक्ति में बैठे थे।
उनकी आँखों में आंसू थे, पर दिल में उम्मीद भी थी।
अभय भी व्हीलचेयर पर बैठा था, चेहरे पर कमजोरी थी लेकिन हिम्मत उतनी ही अटल।
सरकारी वकील खड़े हुए और धीमे लेकिन दृढ़ स्वर में बोले—
“माननीय न्यायालय, यह कोई साधारण मामला नहीं है। यह ऐसा अपराध है जिसने पूरे समाज की आत्मा को झकझोर दिया है। सबूत हमारे पास मौजूद हैं—डीएनए रिपोर्ट, मेडिकल रिपोर्ट, पीड़िता के बयान, गवाहों की गवाही। ये सारे सबूत साबित करते हैं कि अभियुक्तों ने एक निर्दोष लड़की के साथ हैवानियत की हदें पार कीं।
माननीय, यह सिर्फ़ अनाया का मामला नहीं है, यह हर उस बेटी का मामला है जो इस देश में सुरक्षित महसूस करना चाहती है। इस अपराध के दोषियों को ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए जो आने वाले समय के लिए नज़ीर बने। अभियोजन पक्ष आपसे निवेदन करता है कि दोषियों को फाँसी की सजा दी जाए।”
उनकी आवाज़ में दृढ़ता थी। अदालत में बैठे हर व्यक्ति की रूह कांप उठी।
अब बारी बचाव पक्ष के वकील की थी।
वो खड़े हुए और बोले—
“माननीय न्यायालय, अपराध तो हुआ है, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि क्या सभी अभियुक्त इसमें बराबरी के दोषी हैं? कुछ का अपराध छोटा है, कुछ का बड़ा। क्या सबको एक जैसी सजा देना उचित होगा?”
उन्होंने कोशिश की कि किसी तरह कुछ अभियुक्तों की सजा कम हो जाए, पर अदालत में बैठे लोग फुसफुसाने लगे—
“ये सब चाल है, ये दरिंदों को बचाना चाहता है।”
जज ने सभी तर्क सुने।
फैसला सुनाने का समय आ गया।
जज ने अपनी हथौड़ी बजाई और पूरे कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया।
बाहर खड़ी भीड़ का शोर भी जैसे एकदम थम गया हो।
जज ने कहा—
“यह अदालत इस मामले को केवल एक आपराधिक मामला नहीं मानती, बल्कि इसे समाज की आत्मा पर हमला मानती है। अभियुक्तों के अपराध इतने जघन्य हैं कि इन्हें किसी भी प्रकार से क्षमा नहीं किया जा सकता। इस अदालत का निर्णय है कि—
सभी मुख्य अभियुक्तों को धारा 302, 376 और अन्य धाराओं के तहत दोषी ठहराया जाता है। और उन्हें फाँसी की सजा सुनाई जाती है।
यह सजा तब तक लागू रहेगी जब तक वे फाँसी के फंदे पर झूल न जाएँ।”
जज का फैसला सुनते ही अदालत के बाहर मौजूद भीड़ से जोरदार आवाज़ उठी—
“न्याय मिल गया! न्याय मिल गया!”
लोग एक-दूसरे को गले लगाने लगे।
किसी की आँखों में खुशी के आँसू थे, किसी के दिल में संतोष।
अनाया की माँ ने अपने हाथ जोड़कर आसमान की ओर देखा और कहा—
“बेटी… तेरा इंसाफ मिल गया।”
अभय की आँखों से आँसू बहने लगे। वह धीरे से बोला—
“अब मैं चैन से जी सकता हूँ।”
मीडिया की गूंज
हर चैनल पर यही खबर थी—
“दरिंदों को मिली फाँसी।”
“देश की बेटी को इंसाफ।”
लोग मोमबत्तियाँ लेकर जश्न मना रहे थे।
लेकिन यह जश्न सिर्फ़ जीत का नहीं था, यह चेतावनी थी हर उस शख्स के लिए जो औरत की इज्ज़त को खिलौना समझता है।
अंत की सीख
यह फैसला केवल अनाया का इंसाफ नहीं था।
यह उन तमाम बेटियों की आवाज़ था जो अब तक खामोश थीं।
यह वह संदेश था कि अगर समाज एकजुट हो जाए तो इंसाफ नामुमकिन नहीं है।