खामोश हवेली का राज़

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गाँव के किनारे खड़ी पुरानी हवेली को लोग “खामोश हवेली” कहते थे। दशकों से वहाँ कोई नहीं रहता था। दीवारों पर उगी काई, टूटी खिड़कियाँ और जंग लगे गेट देखकर लगता था मानो हवेली साँस ले रही हो। गाँव के बच्चे भी वहाँ पास जाने से डरते थे। बुजुर्ग कहते थे—“वहाँ रात को कोई औरत रोती है, कभी चीखती है, कभी गुनगुनाती है।”अर्जुन, शहर का एक युवा पत्रकार, अपने अख़बार के लिए “भूतहा जगहों का सच” नाम से एक विशेष रिपोर्ट बना रहा था। जब उसने खामोश हवेली के बारे में सुना तो उसकी जिज्ञासा बढ़ गई। गाँव वालों ने

Full Novel

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खामोश हवेली का राज़ - 1

गाँव के किनारे खड़ी पुरानी हवेली को लोग “खामोश हवेली” कहते थे। दशकों से वहाँ कोई नहीं रहता था। पर उगी काई, टूटी खिड़कियाँ और जंग लगे गेट देखकर लगता था मानो हवेली साँस ले रही हो। गाँव के बच्चे भी वहाँ पास जाने से डरते थे। बुजुर्ग कहते थे—“वहाँ रात को कोई औरत रोती है, कभी चीखती है, कभी गुनगुनाती है।”अर्जुन, शहर का एक युवा पत्रकार, अपने अख़बार के लिए “भूतहा जगहों का सच” नाम से एक विशेष रिपोर्ट बना रहा था। जब उसने खामोश हवेली के बारे में सुना तो उसकी जिज्ञासा बढ़ गई। गाँव वालों ने ...Read More

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खामोश हवेली का राज़ - 2

खामोश हवेली का राज़रात गहराती जा रही थी। हवेली में फँसे अर्जुन की साँसें तेज़ हो चुकी थीं। लाल वाली औरत उसकी ओर बढ़ रही थी। अर्जुन ने काँपती आवाज़ में कहा—"मैं सच जानने आया हूँ, किसी का अपमान करने नहीं।"औरत अचानक ठहर गई। उसकी आँखों की चमक कुछ पल के लिए धुँधली पड़ी। उसने कहा—"सच जानने की कीमत देनी पड़ती है… मेरे दर्द को जानने वाला कोई भी इस हवेली से ज़िंदा नहीं गया।"अर्जुन ने हिम्मत जुटाई और डायरी उठाकर बोला—"अगर तुम सचमुच निर्दोष हो तो मैं तुम्हारी कहानी दुनिया तक पहुँचाऊँगा। तुम्हारी आत्मा को मुक्ति मिलेगी।"महिला ...Read More