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खामोश हवेली का राज़
रात गहराती जा रही थी। हवेली में फँसे अर्जुन की साँसें तेज़ हो चुकी थीं। लाल आँखों वाली औरत उसकी ओर बढ़ रही थी। अर्जुन ने काँपती आवाज़ में कहा—
"मैं सच जानने आया हूँ, किसी का अपमान करने नहीं।"
औरत अचानक ठहर गई। उसकी आँखों की चमक कुछ पल के लिए धुँधली पड़ी। उसने कहा—
"सच जानने की कीमत देनी पड़ती है… मेरे दर्द को जानने वाला कोई भी इस हवेली से ज़िंदा नहीं गया।"
अर्जुन ने हिम्मत जुटाई और डायरी उठाकर बोला—
"अगर तुम सचमुच निर्दोष हो तो मैं तुम्हारी कहानी दुनिया तक पहुँचाऊँगा। तुम्हारी आत्मा को मुक्ति मिलेगी।"
महिला की परछाई धीरे-धीरे काँपने लगी। उसकी आँखों से आँसुओं जैसी दो लाल बूंदें गिरीं। उसने धीमे स्वर में कहा—
"मेरे पति ने मुझे कैद कर दिया था। मैं रोती रही, चीखती रही… लेकिन किसी ने मेरी मदद नहीं की। एक रात उन्होंने मुझे इस हवेली के तहख़ाने में ज़िंदा दफ़ना दिया। मेरी आत्मा तब से यहीं भटक रही है।"
इतना कहते ही हवेली की ज़मीन काँप उठी। दीवारें चरमराने लगीं। अर्जुन को लगा कि पूरी हवेली ढह जाएगी। तभी औरत ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया। हाथ बर्फ़ जैसा ठंडा था। उसने कहा—
"तुम्हें मेरा दर्द दुनिया को बताना होगा… तभी मैं इस कैद से आज़ाद हो पाऊँगी।"
अर्जुन ने काँपते हुए सिर हिला दिया। अगले ही क्षण उसके सामने का दृश्य बदल गया। वह हवेली के गेट पर खड़ा था, हाथ में वही डायरी थी, लेकिन हवेली अंदर से शांत और वीरान थी। लाल आँखों वाली औरत कहीं नहीं थी।
गाँव वाले सुबह उसे देखकर हैरान रह गए। अर्जुन ने उन्हें सारी बातें बताईं। पहले तो लोग डरे, लेकिन धीरे-धीरे उसकी बात पर विश्वास करने लगे। उसने अख़बार में पूरा लेख लिखा—“खामोश हवेली का राज़”। उस लेख ने पूरे क्षेत्र को हिला दिया। लोग पहली बार जान पाए कि हवेली में कोई शैतानी ताक़त नहीं बल्कि एक औरत की दर्दनाक कहानी कैद थी।
कुछ दिनों बाद जब अर्जुन फिर से हवेली गया, तो उसने देखा कि वह धीरे-धीरे ढहने लगी है। मानो किसी अदृश्य शक्ति ने उसे मिटा दिया हो। गाँव वाले कहते हैं—"कुसुम की आत्मा अब मुक्त हो गई।"
लेकिन अर्जुन के साथ कुछ अजीब हुआ। हर बार जब वह आईने में देखता, तो उसकी परछाई में उसे कुसुम की झलक दिखाई देती—कभी उसकी आँखें, कभी उसका चेहरा। मानो उसका एक हिस्सा अब अर्जुन के भीतर बस गया हो।
आख़िरी बार जब अर्जुन ने डायरी खोली, तो उसमें एक नई लाइन लिखी थी—
"धन्यवाद अर्जुन… अब मेरी आत्मा आज़ाद है। लेकिन याद रखना, हवेली की खामोशी में तुम्हारा नाम भी जुड़ चुका है। अब यह कहानी सिर्फ़ मेरी नहीं, हमारी है।"
अर्जुन के हाथ काँप गए। उसने डायरी बंद कर दी। दूर से हवेली की टूटी खिड़कियों में हल्की पीली रोशनी झिलमिला रही थी।
गाँव वाले मानते हैं कि हवेली अब वीरान है। लेकिन अर्जुन जानता था—खामोश हवेली अभी भी ज़िंदा है, और उसका राज़ कभी पूरी तरह खत्म नहीं होगा।
“हर रहस्य, हर खामोशी अपने भीतर एक कहानी छुपाए रखती है। चाहे कोई कितनी भी कोशिश करे, सच्चाई को हमेशा के लिए दबाया नहीं जा सकता। इंसान का लालच और क्रूरता भले ही किसी मासूम की ज़िंदगी छीन ले, लेकिन न्याय देर-सवेर ज़रूर सामने आता है। इसीलिए जीवन में सच्चाई और इंसानियत का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि झूठ और अन्याय की हवेली एक दिन ढह ही जाती है।”