गाँव के किनारे खड़ी पुरानी हवेली को लोग “खामोश हवेली” कहते थे। दशकों से वहाँ कोई नहीं रहता था। दीवारों पर उगी काई, टूटी खिड़कियाँ और जंग लगे गेट देखकर लगता था मानो हवेली साँस ले रही हो। गाँव के बच्चे भी वहाँ पास जाने से डरते थे। बुजुर्ग कहते थे—“वहाँ रात को कोई औरत रोती है, कभी चीखती है, कभी गुनगुनाती है।”
अर्जुन, शहर का एक युवा पत्रकार, अपने अख़बार के लिए “भूतहा जगहों का सच” नाम से एक विशेष रिपोर्ट बना रहा था। जब उसने खामोश हवेली के बारे में सुना तो उसकी जिज्ञासा बढ़ गई। गाँव वालों ने उसे समझाया—“मत जा बेटा, जिसने भी वहाँ कदम रखा है, या तो पागल होकर लौटा है, या कभी वापस नहीं आया।” लेकिन अर्जुन ने ठान लिया कि वह सच सबके सामने लाएगा।
एक धुंधली शाम को वह टॉर्च और कैमरा लेकर हवेली पहुँचा। गेट पर जंग लगा ताला टूटा पड़ा था, जैसे किसी ने जल्दबाज़ी में तोड़ा हो। गेट खोलते ही सीलन की बदबू और ठंडी हवा ने उसका स्वागत किया। हवेली के अंदर अंधेरा था, सिर्फ़ टूटी छत से आती चाँदनी फर्श पर लकीरों की तरह बिखर रही थी।
अर्जुन ने पहला कमरा खोला तो धूल भरे फर्नीचर और टूटे झूमर मिले। दीवार पर एक महिला की पेंटिंग टंगी थी—उसकी आँखें इतनी गहरी थीं कि जैसे अर्जुन को घूर रही हों।
अचानक उसे लकड़ी की सीढ़ियों से आवाज़ आई। दिल की धड़कन तेज़ हुई लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और ऊपर चला गया। ऊपर के कमरे में उसे एक पुरानी अलमारी मिली। बहुत कोशिश करने पर वह खुली और उसमें से एक लाल मख़मली डायरी गिरी। डायरी पर सोने जैसे अक्षरों में लिखा था—
“कुसुम की आख़िरी बातें।”
अर्जुन ने काँपते हाथों से डायरी खोली। उसमें लिखा था—
"इस हवेली में मेरा विवाह हुआ था, लेकिन मेरे पति ने मुझे धोखा दिया। मुझे कैद कर लिया गया और एक रात मेरी आत्मा ने इस हवेली को छोड़ दिया। अब यह घर मेरी चुप्पी और मेरी पीड़ा से भरा है। जो भी मेरे दर्द को जान लेगा, उसे अपनी सबसे प्यारी चीज़ खोनी पड़ेगी।"
इतना पढ़ते ही हवेली का माहौल बदल गया। दरवाज़े खुद-ब-खुद बंद हो गए, खिड़कियों से ठंडी हवा चलने लगी और कमरे में अजीब सी सरसराहट गूँज उठी। अर्जुन की टॉर्च बंद हो गई। अंधेरे में उसने महसूस किया कि कोई उसके ठीक पीछे खड़ा है।
वह पलटा तो उसे वही महिला दिखी—जो पेंटिंग में थी। उसकी आँखें लाल चमक रही थीं, और होंठों पर एक भयावह मुस्कान थी। उसने धीमे स्वर में कहा—“तुमने मेरा राज़ जान लिया है, अब बताओ अर्जुन… तुम्हारे लिए सबसे प्यारी चीज़ क्या है?”
अर्जुन काँप गया। उसके दिमाग में माँ की मुस्कुराती तस्वीर आई। उसे लगा मानो उसकी माँ की साँसें अचानक टूट रही हों। वह ज़मीन पर गिर पड़ा और चीख उठा—“नहीं! मेरी माँ नहीं…!”
और फिर… हवेली में सन्नाटा छा गया।
अगली सुबह गाँव वालों ने देखा कि हवेली के गेट पर अर्जुन का कैमरा पड़ा था। उसमें सिर्फ़ एक तस्वीर कैद थी—हवेली की खिड़की में खड़ी एक औरत, जिसकी आँखें लाल थीं और जिसके पीछे अंधेरे में अर्जुन की धुंधली परछाई दिखाई दे रही थी।
उसके बाद से अर्जुन कभी दिखाई नहीं दिया। लोग कहते हैं, अब हवेली की खामोशी में उसकी
भी चीख शामिल हो चुकी है।