अधूरा इश्क़.

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वो एक पुरानी, तीन मंज़िला इमारत थी — शहर के शोर से कुछ दूर, जहाँ दीवारों पर समय के निशान उभर आए थे। इमारत की दरारों में पुराने नोट्स की स्याही अब भी महकती थी, जैसे हर दीवार किसी अधूरी कहानी की गवाह हो। यही था “रहीम कोचिंग सेंटर” — जहाँ हर रोज़ सैकड़ों सपने पन्नों में सिमटते और कुछ दिल धड़कना सीखते थे। क्लास के कोने वाली सीट पर बैठी थी *समा* — एक संजीदा लड़की, जो हमेशा अपनी कॉपी के किनारों पर फूल बनाती थी। उसकी आँखों में सुकून था, लहजे में नर्मी और चेहरे पर वो मासूमियत जो हर नज़र को थमा देती थी। उसके लिए पढ़ाई सिर्फ़ ज़रूरत नहीं, एक इबादत थी। उसी क्लास में *यूसुफ बशीर* भी बैठता था — एक ख़ामोश लड़का, जिसकी आँखों में गहराई थी और मुस्कान में दर्द। वो दूसरों की तरह बातूनी नहीं था। ज़्यादातर वक्त किताबों या नोट्स में डूबा रहता। मगर उसकी ख़ामोशी में कुछ ऐसा था जो खींचता था — जैसे किसी अनकही कहानी का इशारा।

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अधूरा इश्क़ — हिस्सा 1

# अधूरा इश्क़ — हिस्सा 1 ### *जब दिल ने पहली बार धड़कना सीखा* **लेखिका: नैना ख़ान** वो पुरानी, तीन मंज़िला इमारत थी — शहर के शोर से कुछ दूर, जहाँ दीवारों पर समय के निशान उभर आए थे।इमारत की दरारों में पुराने नोट्स की स्याही अब भी महकती थी, जैसे हर दीवार किसी अधूरी कहानी की गवाह हो।यही था “रहीम कोचिंग सेंटर” — जहाँ हर रोज़ सैकड़ों सपने पन्नों में सिमटते और कुछ दिल धड़कना सीखते थे। क्लास के कोने वाली सीट पर बैठी थी *समा* — एक संजीदा लड़की, जो हमेशा अपनी कॉपी के किनारों ...Read More