रागिनी से राघवी

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आश्रम में प्रातःकालीन ध्यान-धारणा के बाद जब सूर्य की पहली किरणें जिनालय के श्वेत संगमरमर पर पड़तीं, तब पंच-परमेष्ठी की पूजा आरंभ होती। घंटियों की मधुर ध्वनि, दीपों जा प्रज्ज्वलन, फूलों की सुगंध, और मंत्रों का सामूहिक उच्चारण वातावरण को पवित्र बना देता।राघवी पूजा के बाद अन्य साध्वियों के साथ दिनचर्या में लग जाती। दोपहर में थोड़ा विश्राम, फिर ग्रंथ-पठन, सेवा-कार्य, और शाम को प्रवचन-श्रवण। इस तरह दिन भर व्यस्तता बनी रहती और खासा थकान के कारण रात में वह गहरी नींद सो जाती।

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रागिनी से राघवी (भाग 1)

आश्रम में प्रातःकालीन ध्यान-धारणा के बाद जब सूर्य की पहली किरणें जिनालय के श्वेत संगमरमर पर पड़तीं, तब पंच-परमेष्ठी पूजा आरंभ होती। घंटियों की मधुर ध्वनि, दीपों जा प्रज्ज्वलन, फूलों की सुगंध, और मंत्रों का सामूहिक उच्चारण वातावरण को पवित्र बना देता।राघवी पूजा के बाद अन्य साध्वियों के साथ दिनचर्या में लग जाती। दोपहर में थोड़ा विश्राम, फिर ग्रंथ-पठन, सेवा-कार्य, और शाम को प्रवचन-श्रवण। इस तरह दिन भर व्यस्तता बनी रहती और खासा थकान के कारण रात में वह गहरी नींद सो जाती। नींद इतनी गहरी कि बीच-बीच म ...Read More

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राघवी से रागिनी (भाग 2)

उस रात रावी तट के उस गाँव में शिशिर की खुली बयार बह रही थी, और मंजीत और रागिनी घर की छत पर बरसाती में बैठे नदी का सुंदर बहाव देख रहे थे। जबकि, आकाश में चमकते चाँद की आवारा चाँदनी बरसाती में घुसी पड़ रही थी।बात करते-करते रात काफी गहरी हो चुकी थी। ओस-कण बरसाती की पॉलीथिन पर टपक रहे थे, और हवा में ठंडक घुल गई थी। माहौल में नींद का आलम छाने लगा था। रागिनी ने जमुहाई ले, आलस्य में कहा, 'मंजी, चलो अब नीचे चलें, नींद बुला रही है...'मंजीत इसी पल की प्रतीक्षा कर रहा ...Read More

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राघवी से रागनी (भाग 3)

आश्रम में सन्नाटा पसरा था। साध्वी विशुद्धमति, जिनकी उम्र अब पिचासी को पार कर चुकी थी, अपने कक्ष में की चौकी पर बैठी थीं। उनकी आँखें बंद थीं, मगर चेहरा उदास। उनके हाथ में वह पुरानी डायरी थी, जिसमें राघवी ने अपने शुरूआती दिनों में भजन और विचार लिखे थे। विशुद्धमति की साँसें भारी थीं, और शरीर कमजोर। राघवी के आश्रम छोड़ने की बात उनके मन को कचोट रही थी।राघवी, जिसे उन्होंने तेईस-चौबीस की उम्र में आश्रम में लिया था, उनके लिए बेटी जैसी थी। वह उसकी मासूमियत, उसकी जिज्ञासा, और उसकी साधना की गहराई को याद कर रही ...Read More

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राघवी से रागिनी (भाग 4)

राघवी दी का आश्रम से बहिर्गमन देख काव्या का मन अस्थिर हो गया था। क्योंकि उसने भी प्रेम में खाकर आश्रम की शरण ली थी। सत्र समाप्ति के बाद जब वे लोग चले गए, रात को आश्रम से चुपके से निकल वह भी रागिनी-मंजीत के ठिकाने की ओर चल पड़ी।उस गहरी रात में चाँद की मद्धिम रोशनी उसे रास्ता दिखा रही थी।उसका इरादा केवल यह देखना था कि क्या वह प्रेम, जो उसने अपने जीवन में खो दिया था, राघवी दी और मंजीत के जीवन में जीवित है? वह समझना चाहती थी कि- क्या प्रेम वाकई जीवात्मा का जीआत्मा ...Read More

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राघवी से रागिनी (भाग 5)

बाहर लगे सार्वजनिक हेण्डपम्प से पानी भरकर लौटने के बाद मंजीत ने घर का दरवाजा बंद कर लिया। बाल्टी रसोई के पास कच्ची मोरी पर रख दी और राघवी के साथ बर्तन धुलवाने लगा।चाँद की हल्की रोशनी में मोरी का यह दृश्य बड़ा मनोरम था। स्टील के बर्तन चांदनी रात में चाँदी से चमक रहे थे। रागिनी का दुपट्टा सीने से सरक गया था, जिसे देखती मंजीत की आंखें वहीं टिकी थीं। और बर्तन मलने से उसकी चूड़ियाँ हल्के-हल्के खनक रही थीं तो वातावरण में एक जलतरंग-सा बज रहा था। शायद, असावधानी-वश उसकी पजामी की मोहरी गीली हो गई ...Read More