Tamacha - 30 in Hindi Fiction Stories by नन्दलाल सुथार राही books and stories PDF | तमाचा - 30 (शंका )

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तमाचा - 30 (शंका )

दिव्या ने एक ही रात में ऐसा राजनीतिक दांवपेंच खेला कि तेजसिंह चारों खाने चित हो गया। उसकी सारी योजना धरी की धरी रह गयी। तेजसिंह अध्यक्ष पद की टिकट न मिलने पर पहले पार्टी में फूट डालने वाला था और उसके बाद निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़ा होना चाहता था। पर दिव्या को भी राजनीतिक बुद्धि विरासत में मिली थी । जिसका उसने सही समय पर सही तरीके से उपयोग किया। तेजसिंह के प्लान की जानकारी मिलते ही उसने रात ही रात में एक योजना बना दी और दिन होते ही उसे साकार रूप भी दे दिया। विधायक श्यामचरण अपनी बेटी की इस योजना पर फुले नहीं समा रहे थे। उसको अब विश्वास हो रहा था कि उसकी बेटी अवश्य उसकी विरासत न केवल संभाल के रखेगी , अपितु उसे और ज्यादा समृद्ध करेगी।

जयपुर से दूर विधायक के एक फार्महाउस में एक गाड़ी रुकती है; जिसमें तेजसिंह उन पहलवालों के साथ उतरता है। पहलवान उसे फॉर्महाउस में बने एक मीटिंग हॉल में ले जाते है ,जहाँ विधायक श्यामचरण उनका ही इंतजार कर रहे थे।

"आओ ..आओ अध्यक्ष साहेब।" विधायक श्यामचरण ने अपनी रोबीली आवाज में बोला।
तेजसिंह विधायक द्वारा अध्यक्ष बोलने पर शंका से भर गया। पहले तो उसके मन में प्रसन्नता का बीज फूट गया। उसने सोचा क्या पता विधायक साहेब ने दिव्या की जगह मुझे अध्यक्ष पद के लिए चुन लिया है। लेकिन अक्सर अचानक ऐसे हालात में मन में होने वाली खुशी शंका में बदल जाती है जब मन में कोई तर्क वितर्क कर लेता है।
तुरंत ही तेजसिंह ने सोचा कि कहीं विधायक साहेब को मेरे प्लान के बारे में पता तो नहीं चल गया है। और उन्होंने मुझे तिरस्कार के भाव से अध्यक्ष बोला। वह कुछ डरते हुए असमंजस की स्थिति में केवल इतना ही बोल पाया। "अध्यक्ष..."
"हाँ! आज से आपको हमारी पार्टी में हमारे ब्लॉक का युवा अध्यक्ष घोषित किया जाता है। लीजिए मुँह मीठा कीजिये।" विधायक ने जब यह बोला तो तेजसिंह के होश उड़ गए। उसने सोचा ही नहीं था कि उसके प्लान का यह हस्र हो जाएगा। वह सोचने लगा कि जरूर इनको हमारे प्लान की ख़बर मिल गयी होगी तभी इन्होंने यह खेल खेला है। उसने स्थिति को संभालते हुए बोला। "अरे नहीं! नहीं! विधायक साहेब मैं अभी कॉलेज में पढ़ने वाला विद्यार्थी हूँ। अभी कुछ पढ़ लिख जाऊँ, उसके बाद आपकी सेवा में तो रहूँगा ही।"
तेजसिंह द्वारा पढ़ने की बात सुनकर विधायक व्यंग्यात्मक भाव से बोला। "पढ़ना है। अरे अध्यक्ष साहेब, नेता अगर पढ़ने लग गए, तो भला देश कौन चलाएगा।लोग तो समझते नहीं कि हम कितना त्याग देते है देश के लिए, हमको तो देश सेवा के लिए अपनी पढ़ाई तक त्यागनी पड़ती है। और आप तो हमारी पार्टी के उभरते हुए नेता हो, आपको अभी बहुत ऊँचाई तक जाना है। यह तो आपकी पहली सीढ़ी है। अगर इसको आपने ठुकरा दिया तो ऊपर जाना तो बहुत मुश्किल हो जाएगा।"
विधायक के वक्तव्य से तेजसिंह दो विचारों के ऊहापोह में फंस गया। कभी सोचता यह सब विधायक की चाल है। इससे बचकर निकल जाऊं तो अच्छा रहेगा; तो कभी सोचता कि विधायक और उसकी बेटी दिव्या के होने से कॉलेज में अध्यक्ष बनना तो मुश्किल है, कम से कम यही बन जाये तो क्या पता , आगे चलकर कुछ बड़ा मिल जाये। वह फिर सोचने लगा कि एक बार विधायक को कॉलेज में अध्यक्ष के लिए बात तो कर लूँ, देखूं क्या जवाब मिलता है? लेकिन साथ में यह भी डर था कि कहीं वो नाराज होकर युवा अध्यक्ष वाला पद भी ना छीन ले। वह भयभीत मन से धीरे-धीरे बोला। " विधायक साहेब अगर इस बार आपकी कृपा से कॉलेज में सेवा करने का अवसर मिल जाये तो अगले साथ आपके हर कदम पर साथ तो हूँ ही।"
"हाँ हाँ सेवा करो ना , अवश्य करो; मेरी बेटी दिव्या इस बार कॉलेज में अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ रही है। तो आप लगा दो जी जान उसको जिताने में।" विधायक ने अपना अगला पत्ता खोलते हुए कहा।
तेजसिंह को अब समझ में आ गया कि अब उसे अध्यक्ष पद के लिए उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। वह सोचने लगा ,चलो कॉलेज में उपाध्यक्ष ही बन जाये तो ठीक है। लेकिन उसके इस अरमान पर भी पानी फेरते हुए विधायक ने अपना आखिरी पत्ता खोल दिया और कहा।" और केवल दिव्या ही नहीं कॉलेज इलेक्शन में बाकी के जो तीनों प्रत्याशी है , उनकी भी जीत होनी चाहिए। यह पार्टी की इज्जत का सवाल है।
विधायक की यह बात सुनकर तेजसिंह को और बड़ा सदमा लग गया। उसने फिर शंका भरे स्वर में विधायक से कहा। "लेकिन विधायक साहेब कॉलेज में उपाध्यक्ष के लिए तो मुझे ही प्रत्याशी बनाया है ना?"
विधायक अपनी पूरी तैयारी कर के बैठा था। उसके पास तेजसिंह के एक-एक सवाल का हल था। तेजसिंह तो अभी नया-नया अंकुरित हुआ पौधा था और विधायक प्रस्तर को भी चीरकर निकला हुआ एक वटवृक्ष। उसने कुछ ऐसा कहा कि साँप भी मर गया और लाठी मारने की ही जरूरत नहीं पड़ी। "मैंने भी सोचा था कि उपाध्यक्ष आपको ही बनाऊँगा लेकिन फिर सोचा कि आप तो अध्यक्ष के काबिल हो लेकिन तुम ही बताओ अब भला मैं अपनी बेटी को तो पीछे रख नहीं सकता। अब अगर तुम्हें उपाध्यक्ष बना दिया तो तुम्हारी इज्जत थोड़ी कम हो जाएगी। इसलिए तुम्हें किंग नहीं बल्कि किंगमेकर बनाने का सोच लिया। पार्टी तुम्हारी योग्यता का आदर करती है। अतः तुम्हें बहुत आगे ले जाना है।"
विधायक के इस मीठे तीर से तेजसिंह चारो खाने चित हो गया। लेकिन विधायक बड़े अनुभवी थे। उसने भविष्य तक के लिए योजना बना ली थी। उसने सोच लिया था कि तेजसिंह अभी भी आगे चलकर कोई विवाद खड़ा कर सकता है। अतः उसने आखिर में कुछ भारी आवाज के साथ बोला। "और हाँ , यह इलेक्शन तुम्हारे लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है। यही आपकी आगे की यात्रा के लिए टिकट है। कॉलेज इलेक्शन में चारों प्रत्याशियों के जीतने के बाद ही आपकी युवा अध्यक्ष के लिए घोषणा की जाएगी। और हाँ जो भी प्रत्याशी है उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है। इलेक्शन में अगर कुछ गड़बड़ हो गयी तो न केवल तुम्हारा पद बल्कि तुम्हारा कद भी खत्म हो जायेगा। "

कुछ ही देर में तेजसिंह उन पहलवालों के साथ गाड़ी में बैठकर, वहाँ से अपने मन में शंकाओं का अंबार लेकर रवाना हो जाता है ।

क्रमशः.......