शहर के सबसे पॉश इलाके में एक आलीशान बंगला था, जिसे लोग "वर्मा हाउस" के नाम से जानते थे। बंगला जितना खूबसूरत था, उतनी ही अजीब बातें उससे जुड़ी हुई थीं। कहते हैं, वहाँ अजीब घटनाएँ होती थीं—रात को दरवाजे खुद-ब-खुद खुल जाते, खिड़कियों पर किसी के खड़े होने की परछाइयाँ दिखतीं, और सबसे डरावनी बात—उस घर के एक कमरे का दरवाजा सालों से बंद था।
रहस्यमयी दरवाजा
वर्मा हाउस के मालिक, आदित्य वर्मा, शहर के जाने-माने बिजनेसमैन थे। उनकी पत्नी, अंजली, एक आर्टिस्ट थी। उनका 12 साल का बेटा, आरव, बेहद होशियार था, लेकिन उसे अक्सर नींद में चलते हुए देखा जाता था।
घर के सबसे ऊपर वाले कमरे का दरवाजा कभी नहीं खुलता था। नौकर-चाकर भी उस तरफ जाने से डरते थे। लेकिन एक रात कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरे घर को हिला कर रख दिया।
रात का डरावना सच
रात के 2 बजे थे। पूरे घर में सन्नाटा था। तभी एक जोरदार आवाज़ आई—"धड़ाम!"
आदित्य और अंजली हड़बड़ा कर उठे। आवाज़ ऊपर वाले कमरे से आई थी। वे भागते हुए ऊपर पहुँचे और देखा—दरवाजा जो सालों से बंद था, आज खुला पड़ा था। अंदर का दृश्य देखकर दोनों के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
बेड के ठीक सामने एक कुर्सी पर कोई बैठा था। हल्की चाँदनी में उसका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था, लेकिन उसके बाल उलझे हुए थे, कपड़े पुराने और फटे हुए थे। अचानक, वह आकृति हिलने लगी और उठकर दरवाजे की तरफ बढ़ी।
अंजली चीख पड़ी। आदित्य ने हिम्मत जुटाई और कमरे की लाइट जलाई। लेकिन जैसे ही रोशनी फैली, वह आकृति गायब हो गई।
एक पुराना सच सामने आया
सुबह होते ही आदित्य ने घर के पुराने कागजात खंगालने शुरू किए। तभी उन्हें एक पुरानी डायरी मिली, जो उनके दादा जी की थी। उसमें लिखा था—
"1932 में इस घर में एक नौकरानी, सरिता, काम किया करती थी। वह बहुत शांत और मेहनती थी। लेकिन एक दिन वह अचानक गायब हो गई। किसी को कुछ समझ नहीं आया। बाद में पता चला कि सरिता को घर के मालिक के बेटे से प्यार हो गया था। समाज के डर से उसने खुद को इसी कमरे में बंद कर लिया और कभी बाहर नहीं आई। जब दरवाजा तोड़ा गया, तो वह बिस्तर पर मृत पड़ी थी। उसके बाद से यह कमरा हमेशा के लिए बंद कर दिया गया।"
आदित्य और अंजली ने एक-दूसरे की तरफ देखा। क्या जो उन्होंने रात को देखा, वह सरिता की आत्मा थी?
रात का अंतिम सामना
उस रात आदित्य ने तय किया कि वे फिर से उस कमरे में जाकर सच्चाई जानेंगे। अंजली डर रही थी, लेकिन आदित्य ने उसे समझाया। आधी रात को दोनों ने दरवाजे के बाहर कैमरा लगाया और कमरे के अंदर गए।
कमरा ठंडा था, जैसे वहाँ बरसों से हवा भी नहीं चली हो। अचानक, खिड़की अपने आप खुल गई, और एक ठंडी हवा का झोंका आया। तभी कैमरे की स्क्रीन पर हलचल हुई। एक धुंधली आकृति कमरे के एक कोने में खड़ी थी।
अंजली काँप उठी। आदित्य ने हिम्मत जुटाकर पूछा, "सरिता, क्या तुम यहाँ हो?"
कुछ पल के लिए खामोशी छाई रही। फिर कैमरे की स्क्रीन पर एक धुंधला सा चेहरा उभरने लगा। एक धीमी, टूटती आवाज़ आई—
"मुझे… घर… वापस… चाहिए…"
अंतिम विदाई
आदित्य और अंजली ने पुरोहित को बुलाया और पूरे घर में पूजा करवाई। पुरोहित ने बताया कि आत्मा को मुक्त करने के लिए उस कमरे में दीपक जलाकर प्रार्थना करनी होगी।
पूजा के बाद, उस कमरे में फिर कभी कोई हलचल नहीं हुई।
लेकिन हर पूर्णिमा की रात, जब चाँद की रोशनी खिड़की से अंदर आती है, तो खिड़की के शीशे पर किसी के चेहरे की हल्की छवि दिखती है—जैसे कोई अपने घर को देख रहा हो।
क्या यह आत्मा मुक्त हुई? या फिर अभी भी इस घर में कुछ बाकी है?
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