Bazaar - 1 in Hindi Anything by Neeraj Sharma books and stories PDF | बाजार - 1

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बाजार - 1

     ये उपन्यास एक धांसू किरदार की सत्य कहानी पे लिखना उतना ही कठिन हैं जितना बम्बे की हीरो मोपड कपनी से निकलना कठिन होता हैं, यातायात ही इतना की पूछो मत। ये किरदार फिल्मो तक का सफर कैसे तेह करता हैं, कौन से समझोतो की कहानी रचता हुआ ये उपन्यास कया कया और समझोतो की घोषणा करता हैं, यही बस तकलीफो के बाद पल दो पल ख़ुशी के होते हैं जीने को, यही दर्शाता हुआ कब ज़िन्दगी की शाम हो जाती हैं, बस यही जिंदगी हैं बस यही जीना हैं बस, और सपने कैसे संग संग सफर करते हैं... उसी को पता हैं।

 हाजी बात कर रहा हूँ मैं.. डेढ़ साल गुजर गया। लेकिन मैं एक कला थेटर से बाहर निकल ही नहीं पा रहा था... मेरे रोल भावुक थे, पर टूटे से किसी फ़टीचर से थे।

हार खप गया था मैं, कुछ उम्र का भी जिक्र था, वही 29 साल, दिल्ही की वही पुरानी गलिया... सच मे किसी नाटक जैसी ही थी।

                              मुझे कब माया मिल गयी पता ही नहीं चला.. बड़ी थी उम्र मे... वो मुझे कुछ हट कर रोल दें देना चाहती थी... पर मैं भी हाजर था। " उसने एक शर्त रखदी मेरे से... " मैं तैयार था उसकी शर्त पर काम करने को.. " बम्बे भी भेज देना चाहती थी... " बस उसने रोब से कहा था मुझे, जानवर कब खतरनाक होता हैं। " मैं तो चुप कर गया था। मैंने उनसे पूछा " शायद मैं नहीं जानता "  माया हस पड़ी। जानवर इस लिए तुझे कहा हैं मैंने.. कि तू खलनायक वाली भूमिका करना... एक्टर नहीं चलेगा... मिस्टर। "

"--ओह बड़ी दूर पार दृश्ता हैं आपके पास।"

"माया इंडस्ट्री मे लोग मुझे बुलाते हैं, इसी बेखुबी से। "

मैंने कहा.. शर्त ¡"!  "शर्त बताती हूँ --- सुन कर न  नुकर की तो कोई तेरा हक़ और ले जायेगा..."  

" नहीं --- आप मुझे बम्बे सेटल करा दें, मैं शर्त पुगाऊगा अआपकी। "

"ओह --- बहुत बेसबरे हो जनाब "

" सुनो, मेरी बेटी पोलियो ग्रस्त हैं... दोनों टागे खराब हैं... शादी की उम्र हैं, उससे बम्बे की चमक के बाद शादी करोगे। " मेरे ऊपर जैसे ढेर सारा पानी पड़ गया। मैंने माथे से पसीना पुझ डाला।

                              मैंने कहा ----" अगर मैं मुकर जाऊ.. तो... " माया हस पड़ी.... तुम ऐसा कर ही नहीं सकते। पूछो कयो... "

       "कयो....? "

    " बेबसी के आगे जिंदगी जिन्दा दिल चाइये। "

"ओह ----"

" मुझे शर्त नहीं दिल से आपकी बेटी का रिश्ता मंजूर हैं... उसे खुश इतना रखुगा.. पर वो चिड़चिड़ा पन ना हो। "

" चिड़चिड़ा पन होगा, ये आप दूर खत्म कर सकते हैं, मैं नहीं... उच्चा थोड़ा सुनता हैं.. कानो मे मशीन सुननेवाली हैं... जनाब "

"बोलो अब सोच कर, यस या नौ... "

जज्बाती  रिश्ते यस नौ पर नहीं... बुलंदी पर पुहच ने के लिए सीढ़ी तो लगती हैं, माया जी। "

" -----मेरा आप के लिए इतना आभार हैं, कि आप मुझे आपनी लड़की... और फिल्मे देना चाहती हैं... " आप का शुक्रिया के लफ़्ज़ मेरे पास नहीं हैं। "

" चलो... बम्बे... जुबान ही काफ़ी हैं माया के लिए। "

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